चिकित्सा, बीमा व पेंशन योजनाओं का मिले लाभ।
शासन के तीन अन्ग हैं – विधायिका, कार्यपालिका व न्यायपालिका। समाज के प्रति अपने दायित्वों का निर्वहन करने के कारण मीडिया का इतना महत्त्व बढ़ गया कि उसे लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाने लगा।इसके पीछे पत्रकारों की लम्बी सन्घर्ष गाथा है। इस समय प्रिन्ट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के साथ सोशल मीडिया ने एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया है। सक्रियता बढ़ने से ख़तरे भी बढना स्वाभाविक है। मीडिया कर्मियों पर हमले होना,हत्या हो जाना, परिजनों का उत्पीड़न होना, पुलिस, प्रशासनिक अधिकारियों व भ्रष्ट तत्वों द्वारा निरन्तर हमलों,फर्जी मुकदमे लिखे जाने की एक बहुत विशाल श्रन्खला है। मीडिया कर्मियों की सुरक्षा को लेकर विभिन्न स्तरों पर आवाज भी उठी। संसद में भी अनेक बार पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर चिंता व्यक्त की गई। विभिन्न राज्य सरकारों ने भी अपने स्तर से सुरक्षा को लेकर दिशा निर्देश जारी किए किन्तु कोई कानून नहीं बन सका।प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया भी ज्यादा शक्ति सम्पन्न नहीं है।पत्रकारों की सुरक्षा हेतु कानून बनने में सबसे बड़ी बाधा नौकरशाही है। वर्ष 2011 में व्हिसिल व्लोअर प्रोटेक्शन बिल लाया गया जो संसद के दोनों सदनों से पारित हो गया और राष्ट्रपति के पास वर्ष 2014 से लम्बित है। इस बिल के द्वारा भ्रष्टाचार के विषय उठाने वालों की सुरक्षा के उपाय किए गए हैं।इसी तरह लोकपाल कानून बन जाने के बाद भी आज तक नौकरशाही की वजह से निष्प्रभावी है। नौकरशाही अपने ऊपर किसी भी प्रकार का अंकुश नहीं चाहती और हमारे नेतागण उस पर पूरी तरह से आश्रित है।
पत्रकारों साथ ही स्वतन्त्र रूप से लोक कल्याण के विषय उठाने वाले सामाजिक व सूचना कार्यकर्त्ताओं की सुरक्षा व संरक्षा हेतु एक केन्द्रीय कानून की जरूरत है। इस कानून में पत्रकारों, सामाजिक व सूचना कार्यकर्त्ताओं के सम्मान की सुरक्षा की गारंटी हो।इन पर हमला करने वालों की तत्काल गिरफ्तारी हो साथ ही जमानत की व्यवस्था न हो तथा त्वरित न्यायालय में सुनवाई की व्यवस्था हो।
राष्ट्रीय व राज्य स्तर पर उच्चतम न्यायालय व उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की अध्यक्षता में शक्ति सम्पन्न आयोग गठित हो,आयोग में वरिष्ठता व योग्यता के आधार पर पत्रकारों व सामाजिक/सूचना कार्यकर्त्ताओं को भी सदस्य नामित करने की व्यवस्था हो। आयोग की अनुमति के बिना पत्रकारों, सामाजिक/सूचना कार्यकर्त्ताओं के विरुद्ध दान्डिक अभियोग पंजीकृत न हो। केन्द्र व राज्य सरकार द्वारा विभिन्न स्तरों पर गठित समितियों में इन्हें स्थान दिया जावे। जिला मुख्यालयों पर इनके बैठने हेतु भवन की व्यवस्था हो। सरकार की ओर से इन्हे चिकित्सा, बीमा, पेंशन जैसी सुविधाओं से आच्छादित किया जाये।समन्वय हेतु जिला,मन्डल व राज्य स्तर पर प्रशासन के साथ मासिक बैठक का आयोजन हो जिसमें इनकी समस्याओं का तत्काल समाधान हो।साथ ही इनके लिए भी एक आचार संहिता बनाई जावे ताकि इस क्षेत्र में भी आवश्यक सुधार हो सके।