उघैती। उघैती कस्बा रामलीला कमेटी द्वारा हर वर्ष के भांति इस वर्ष भी श्री रामलीला मंचन का शुभारंभ किया गया। मुख्य थाना प्रभारी सुरेंद्र सिंह ने फीता काटकर उद्घाटन किया। रविवार के दिन कस्बा उघैती में हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी श्री आदर्श रामलीला कमेटी के द्वारा श्री रामलीला मंचन का शुभारंभ किया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि थाना प्रभारी सुरेंद्र सिंह पहुंचे। वही थाना प्रभारी को सोल प्रश्न चित्र देकर स्वागत किया गया।


थाना प्रभारी ने इस मौके पर ग्रामीणों को संबोधित करते हुए रामलीला को प्राचीन परंपरा बताते हुए कहा कि यह मर्यादा, संस्कृति व संस्कार की पाठशाला है। इसका अनुसरण कर समाज में व्याप्त कई सामाजिक बुराइयों का जहां अंत किया जा सकता है। वहीं भूल रहे मर्यादा, संस्कार व संस्कृति को हम पुन: स्थापित कर सकते हैं। कहा कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने जिस तरह अपना

जीवन जिया था। ठीक उसी प्रकार हमें भी ऐसा ही जीवन जीने की जरूरत है। और भाई के भाई प्रतीक ऐसा प्रेम होना चाहिए श्री राम जी को 14 वर्ष का वनवास हुआ और साथ में श्री लक्ष्मण ने भी 14 वर्ष का वनवास काटा उन्होंने कहा कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने जिस तरह अपना जीवन जिया था ठीक उसी प्रकार हमे भी ऐसा ही जीवन जीने की जरूरत है। आज हम सभी को श्रीराम के अलौकिक जीवन से प्रेरणा लेने की जरूरत है। प्रधान बाबू सिंह ने कहा कि उघैती कस्बा में बीते लंबे समय से हो रही रामलीलाएं सामाजिक सद्भावना और समरसता की प्रतीक हैं।

और फिर नारद मोह की कथा का मंचन हुआ
नारद मोह की कथा
नारद जी ने एक आश्रम में जन्म लिया था । उनकी माँ उस आश्रम की सेविका थीं। नारद जी का बचपन ऋषि कुमारों के साथ खेल-कूदकर बीता। ऋषि-महर्षियों के संग ने उनके मन में छुपी हुई आध्यात्मिक जिज्ञासा को जगा दिया और वे भी योग के रास्ते पर चल पड़े।एक दिन नारद जी और भगवान विष्णु साथ-साथ वन में जा रहे थे कि अचानक विष्णु जी एक वृक्ष के नीचे थककर बैठ गए और बोले, ‘भई नारद जी हम तो थक गए,प्यास

भी लगी है। कहीं से पानी मिल जाए तो लाओ। हमसे तो प्यास के मारे चला ही नहीं जा रहा है। हमारा तो गला सूख रहा है।’ नारद जी तुंरत सावधान हो गए, उनके होते हुए भला भगवान प्यासे रहें। वे बोले, ‘भगवान अभी लाया, आप थोड़ी देर प्रतीक्षा करें।’ नारद जी एक ओर दौड़ लिए। उनके जाते ही भगवान मुस्कराए और अपनी माया को नारद जी को सत्य के मार्ग पर लाने का आदेश दिया।

इस कथा से हमें यह शिक्षा मिलती है कि यदि हमारे पास कुछ है, हमने अथक परिश्रम, लगन तथा निष्ठा से कुछ प्राप्त कर लिया है चाहे वह अपार धन हो, शारीरिक शक्ति हो, भरा-पूरा परिवार हो या फिर कोई ऊंची योग्यता, पद या यश हो तो उस पर घमण्ड क्यों करें। क्या हमसे ऊपर और लोग नहीं हैं? क्या हम ही सर्वोपरि हैं? अनेक हमसे पहले हो चुके हैं और आगे भी होगें फिर घमण्ड कैसा। अपनी इस विशेषता से अपना और दूसरों का लाभ होने दें तभी उसका कुछ महत्त्व है अन्यथा वह तो कोयले की बोरी के समान है जो आपके स्टोर में व्यर्थ में ही बिना उपयोग में आए रखी है। इकट्ठा करने में नहीं बांटने में सुख है, आनन्द है।

मनोज पालीवाल प्रेमपाल शर्मा मुनीम जी चंद्रपाल गुप्ता प्रधान बाबू सिंह प्रधान अमित गुप्ता सीपी सिंह सुरेंद्र मास्टर साहब उमेश चित्तौड़िया रामनिवास चित्तौड़िया हरपाल झा समस्त क्षेत्रवासीय और ग्रामवासी।

रिपोर्ट अकरम मलिक