गोपाल धर्मशाला मोहल्ला ठेर पर मीनू रस्तोगी द्वारा आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के आज सातवें दिन सुदामा चरित्र और शुकदेव की विदाई भागवत कथा का प्रसंग हुआ।

सम्भल। गोपाल धर्मशाला में चल रही सात दिवसीय संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा के अंतिम दिन श्री सुदामा चरित्र, शुकदेव की विदाई व्यास पूजन और सात दिनों की कथा का सूक्ष्म रूप से व्याख्यान किया गया। कथा वाचक श्री राम स्नेही मिश्रा जी ने सुदामा चरित्र के माध्यम से भक्तों के सामने मित्रता की मिसाल पेश की और समाज में समानता का संदेश दिया। साथ ही भक्तो को बताया कि श्री मद्भागवत कथा का सात दिनों तक श्रवण करने से जीव का उद्धार हो जाता है तो वहीं इसे कराने वाले भी पुण्य के पात्र है।
आगे कहा कि संसार में मित्रता भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा की तरह होनी चाहिए। जिनकी कथा में सच्ची मित्रता दर्शाई गई है। आधुनिक युग में स्वार्थ के लिए लोग एक दूसरे के साथ मित्रता करते हैं और काम निकल जाने पर लोग एक दूसरे को भूल जाते हैं। जीवन में प्रत्येक प्राणी को परमात्मा से एक रिश्ता जरूर बनाना चाहिए। भगवान से बनाया गया वह रिश्ता जीव को मोक्ष की ओर ले जाएगा। सुदामा ने विपरीत परिस्थितियों में अपने सखा कृष्ण का चिंतन और स्मरण नहीं छोड़ा। जिसके फलस्वरूप कृष्ण ने भी सुदामा को परम पद प्रदान किया। इस दौरान श्री कृष्णा और सुदामा की झांकी दिखाई गई। व्यास जी ने शुकदेव का प्रसंग सुनाते हुए कहा शुकदेव जन्म लेते ही ये बाल्य अवस्था में ही तप हेतु वन की ओर भागे, ऐसी उनकी संसार से विरक्त भावनाएं थी। परंतु वात्सल्य भाव से रोते हुए श्री व्यास जी भी उनके पीछे भागे। मार्ग में एक जलाशय में कुछ कन्याएं स्नान कर रही थीं, उन्होंने जब शुकदेव जी महाराज को देखा तो अपनी अवस्था का ध्यान न रख कर शुकदेव जी का आशीर्वाद लिया। लेकिन जब शुकदेव के पीछे मोह में पड़े श्री व्यास वहां पहुंचे तो सारी कन्याएं छुप गयीं। ऐसी सांसारिक विरक्ति से शुकदेव जी महाराज ने तप प्रारम्भ किया ।।भगवान श्री शुकदेव जी ने पहली बार भागवत शुकतीर्थ मे सुनाई । कथा के उपरांत श्री व्यास जी का पूजन मुख्य आयोजिका मीनू रस्तोगी एवं उनके परिवार के द्वारा आरती उतारकर किया गया।
तद्उपरांत उपस्थित समस्त श्रद्धालुओं ने भी उनका पूजन कर आशीर्वाद प्राप्त किया ।कथा के उपरांत सभी श्रद्धालुओं ने प्रसाद स्वरूप भोजन ग्रहण किया।