ऐतिकाफ का मतलब सारी दुनिया छोड़कर अल्लाह के दामन मे पनाह लेना है

सम्भल।मदरसा तुश्शरा के सदरे मुदर्रिस मौलाना बिलाल ने कहा कि रमज़ान का सबसे फज़ीलत वाला अमल आखिरी दस दिनो का ऐतिक़ाफ करना है। उन्होने कहा कि बीस रमज़ान को मग़रिब की नमाज़ से पहले नज़दीक की मस्जिद मे जाकर दस दिन ऐतिक़ाफ में बैठना सुन्नते किफाया है।
मौलाना बिलाल ने आगे बताया कि ऐतिक़ाफ का मतलब सारी दुनिया छोड़कर अल्लाह के दामन में पनाह लेना है और जहन्नुम से बचना है। मौलाना बोले कि ऐतिक़ाफ में 21, 23,25 और 27 की रातें शबे-क़द्र की हो सकती हैं।जिनमें इबादत का सवाब हजार साल के बराबर होता है। अगर मस्जिद में इबादत के बजाए रात को सो भी गए तो इबादत का सवाब मिलेगा। जो घर पर नही मिलता है। उन्होने अपील की, कि जिस तरह कोरोना काल में पांच वक़्त की नमाज़, तरावीह, जुमे की नमाज़ घर पर अदा की, उसके बाद ख़ुशनसीब बंदो को फिर मौक़ा मिला है कि अपनी इबादत में खूब वक़्त गुज़ारें और अपने मौहल्ले, शहर, और मुल्क की तरक्की और हिफ़ाज़त और ख़ासतौर से उम्मते मुस्लिमा की तरक्की, हिफाज़त के लिए और मरहूमीन के लिए खुसूसी तौर पर दुआ-ए-मग़फिरत करें।

सम्भल से खलील मलिक की रिपोर्ट