सम्भल। वैसे तो रमज़ान का पूरा महीना ही इबादत का है लेकिन रमज़ान का आखरी अशरा शुरू होने पर एहतेकाफ का बेहतरीन अमल है। अगर पूरी बस्ती में एक शख्स भी एहतेकाफ में बैठ जाए तो पूरी बस्ती का हक़ अदा हो जाता है।एहतेकाफ मे बैठने वालों को दो हज और एक उमरे का सवाब मिलता है।नाज़िश नसीर खान ने बताया कि एहतेकाफ 20वीं रमज़ान की शाम को सूरज ढहने से पहले शुरू होता है।और रोज़ेदार मस्ज़िदों में दाखिल हो जाते है जो ईद का चांद देखकर ही घर लौटते हैं, इसी आखिरी अशरे में शब-ए-कद्र की रात भी होती है।रमज़ान के आखिरी 10 दिनों यानी तीसरे अशरे के दौरान लोग एहतेकाफ में बैठते हैं। इस दौरान लोग मस्ज़िद के किसी कोने में बैठकर अल्लाह की इबादत करते हैं और खुद को परिवार व दुनिया से अलग कर लेते हैं। इन 10 दिनों के दौरान वे एक ही जगह पर बैठकर खाते-पीते हैं।सोते-जागते हैं और नमाज़-कुरान पढ़ते हैं। वहीं महिलाएं एतकाफ के लिए घर के किसी कमरे के एक कोने में पर्दा लगाकर बैठती हैं।रमज़ान मुबारक मे सदका-ए-फितर की राशि गेहूं के वर्तमान दर को ध्यान में रख कर निर्धारित की जाती है।
इस साल औसत किस्म के गेंहू की कीमत 24 रुपये प्रति किलो है। इस दर से दो किलो 45 ग्राम गेंहू की कीमत 49 रुपये 10 पैसे होती है।इसलिए एहतियातन इस बार मुसलमान सदका-ए-फितर की रकम 50 रुपये अदा करें। शरीयत के अनुसार यह बताया गया है कि हर मालिके नेसाब व्यक्ति को अपने और अपने परिवार की तरफ से सदका-ए-फितर के लिए दो किलो 45 ग्राम गेहूं या इसकी कीमत निकाल कर ईद उल फितर से पहले गरीबों, यतीमों, मदरसों और जरूरतमंदों को दिया जाता है। हर मुसलमान का फ़र्ज़ है सदका-ए-फितर ईद की नमाज़ से पहले प्रत्येक मुसलमान को सदका-ए-फितर अदा करना फर्ज़ है।

रिपोर्ट खलील मलिक