संभल। अल्लाह तबारको ताला ने इरषाद फरमाया रमजान का वह महीना है, जिसमे कुरान नाजिल किया गया। रोज़ा भी मिसले नमाज़ के फर्ज़ ऐन है। उसकी फर्ज़ियत का मुनकिर इस्लाम से खारित है।और बिला शरअय उर्ज छोड़ने वाला सख्त गुनाहगार और दौज़ख का सजावर है। पूरे महीने के रमज़ान के रोज़े फर्ज हैं। शरयत मे रोज़े के मायने हैं।अल्ला की इबादत की नियम से सुबह सादिक से लेकर सूरज डूबने तक खाने पीने ओर अपने आप को गुनाहो से रोके रखना है। नाबालिग पर रोज़ा फर्ज़ नहीं ओर मज़नून पर यानी पागल पर भी रोज़ा फर्ज़ न होगा। ईद और बकराईद की 10 तारीख 11-12 और 13 का रोजा रखना हराम है। सुबह सादिक का वक्त कहलाता है।एक रोशनी है कि पूर्व की जानिब जहां सूरज निकलता है बिल्कुल उसके ऊपर मीनारों में जुनूब दक्षिण और शुमाल पहाड़ उत्तर मे दिखाई देती है, और बढ़ती जाती है।दक्षिण सुबह सादिक से मुराद वह सफेदी है जो सुबह काज़िब के बाद मषरर्मो उफक मे दाये बाये फैलती है, और इसी सफेदी से नमाज़ फज़र का वक्त शुरू होता है, और आफताब की हल्की सी रौषनी भी ज़ाहिर हो जाये यानि दिख जाने या नज़र आये तो नमाज़ फर्ज़ का वक्त खत्म हो जाता है। इसी सुबह सादिक से पहले-पहले कुछ खाने को सहरी कहते है।
सम्भल से खलील मलिक