उझानी। नगर के समीपवर्ती गांव तेहरा में मेरे राम सेवा समिति की ओर से चल रही नौ दिवसीय श्रीराम कथा के चौथे दिन राजा दशरथ का पुत्रेष्ठि यज्ञ, भगवान का प्रकाट्य, विश्वामित्र द्वारा राजा दशरथ से राम और लक्ष्मण को मांगने, नारद का अभिमान, विश्वमोहिनी का स्वयंवर, मनु शतरूपा का तप वरदान, पृथ्वी पर देवताओं की करुण पुकार आदि की कथा हुई। कथावाचक सामाजिक संत श्री रवि जी समदर्शी महाराज ने कहा कि मनुष्य का जीवन रेंगने, रोने और पराजय को नहीं, विजय के लिए है। बच्चों में वीरता के गुण भरें और आत्मविश्वास जगाएं।आत्मविश्वास से मनुष्य में दिव्यशक्तियां प्रवाहित होती हैं। ऊंचे पर्वतों को लांघने की सामर्थ्य मिलती है। संसार भरोसा करता है। उन्होंने कथा का मार्मिक प्रसंग सुनाते हुए कहा कि विश्वामित्र ने अयोध्या के राजा दशरथ से राम और लक्ष्मण को यज्ञ रक्षा के लिए मांग लिया। जिससे दुष्टजन व्यवधान पैदा न कर सकें। ताड़का, सुबाहु और मारीच का आतंक था। विश्वामित्र और जंगल में रहने वाले साधु संत परेशान थे। नियमित यज्ञ भी नहीं कर पाते थे। दुष्ट सुबाहु यज्ञ स्थल पर मरे प्राणियों की हड्डी बिखेर देता। विश्वामित्र ने विचार कर निर्णय लिया कि यज्ञ की रक्षा के लिए अयोध्या के राजा दशरथ से राम और लक्ष्मण को मांग लें। विश्वामित्र अयोध्या पहुंचे राजा दशरथ ने उनका स्वागत किया और आने का कारण पूंछा। तब विश्वामित्र ने यज्ञ की रक्षार्थ उनसे राम और लक्ष्मण को मांग लिया। राजा दशरथ अपने पुत्र राम और लक्ष्मण को देने से मना कर दिया और कहा आप चाहें मेरी सेना ले जाएं या उन राक्षसों का वध करने मैं स्वयं चलूंगा। राजा दशरथ मोह के कारण राम लक्ष्मण को नहीं दे रहे थे। असमंजस में पड़ गए। गुरु वशिष्ट के कहने पर महाराज दशरथ ने विश्वामित्र को राम और लक्ष्मण को सौंप दिया। अयोध्या से राम-लक्ष्मण को लेकर विश्वामित्र अपने आश्रम लौट आये। जैसे ही राम-लक्ष्मण विश्वामित्र की कुटिया की ओर जा रहे थे। उन्हें रास्ते में ताड़का राक्षसी मिली। राम ने एक ही बाण से उसे मार दिया। राम और लक्ष्मण आश्रम में रहकर विश्वामित्र के यज्ञ स्थल की रक्षा करने लगे। यज्ञ के समय मारीच को वाण मारकर लंका भेज दिया। सुबाहू का वध के बाद जंगल में साधु-संत सुरक्षित हो गए।देवाचार्य ने वेदमंत्रोंच्चारण कर पूजन कराया। मुख्य यजमान प्रदीप गोयल, श्रीमती आभार गोयल रहे। पोषाकी लाल यादव और हरिओम यादव ने आरती की। इस मौके पर संतोष, सीता, विनीता, राजमाला, सुमन, पिंकी, मोना, कुसुम, दीक्षा, रीना कमलेश मिश्रा, गुड्डो गुप्ता, सोनी चौहान, नेहा गुप्ता, कुंदन देवी, देवकी, किरण, मुगलेश, प्रेमलाता, आचार्य ऋषिपाल त्रवेदी, नरेश चौहान,विकास चौहान, अनंत चौहान, अरविंद शर्मा, महावीर सिंह राघव, डा. सनत दुवेदी, ब्रजपाल सिंह, रामवीर सिंह, सुरेन्द्र प्रकाश गुप्ता, दुर्ग पाल, प्रसादी, रामदत्त, सुरेश आदि मौजूद रहे।