बरेली। जनपद बरेली का ऐतिहासिक और प्राकृतिक धरोहर स्थली लिलौर झील अब पर्यटकों के लिए नए रूप में आकर्षण का केंद्र बनने जा रही है। आवला रामनगर के पास स्थित इस झील को इको-टूरिज्म के रूप में विकसित किया जा रहा है। यहां जल्द ही टॉय ट्रेन पर्यटकों को झील का मनमोहक नजारा कराएगी, वहीं मोटर बोट सफारी का रोमांच भी पर्यटकों को मिलेगा।

महाभारत कालीन है लिलौर झील

किवदंतियों के अनुसार लिलौर झील का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। मान्यता है कि पांडव अपने वनवास के दौरान यहां आए थे। उस समय यक्ष ने पांच प्रश्न पूछे थे, जिनके उत्तर मिलने पर ही पांडवों को जल पीने की अनुमति मिली थी। इसी कारण यह स्थल पौराणिक महत्व भी रखता है।

इको-टूरिज्म की दिशा में बड़ा कदम

प्रदेश सरकार की मंशा के अनुरूप बरेली प्रशासन ने इस झील को पर्यटन और पर्यावरण संरक्षण दोनों दृष्टियों से विकसित करने का बीड़ा उठाया है। झील के चारों ओर प्राकृतिक सौंदर्य को सुरक्षित रखते हुए यहां आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं।

झील के किनारों पर वॉक-वे और हरियाली से सजे ट्रैक बनाए जाएंगे।

बच्चों और परिवारों के लिए टॉय ट्रेन की सुविधा होगी।

पर्यटक मोटर बोट व पैडल बोट सफारी का आनंद ले सकेंगे।

झील को पक्षी प्रेमियों के लिए बर्ड वॉचिंग साइट के रूप में भी विकसित किया जाएगा।

जनप्रतिनिधियों व प्रशासन की संयुक्त पहल

इस परियोजना को मूर्त रूप देने में कैबिनेट मंत्री धर्मपाल सिंह, जिलाधिकारी अविनाश सिंह और मुख्य विकास अधिकारी देवयानी सिंह की विशेष भूमिका रही है। इनके संयुक्त प्रयासों से लिलौर झील अब एक अनोखा पर्यटन स्थल बनने जा रही है, जो स्थानीय लोगों के साथ-साथ देश-विदेश के पर्यटकों को भी आकर्षित करेगा।

पर्यटन से मिलेगा स्थानीय लोगों को लाभ

लिलौर झील का इको-टूरिज्म स्थल के रूप में विकास न केवल बरेली की पहचान को नई ऊँचाई देगा बल्कि स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के नए अवसर भी पैदा करेगा। बोट संचालन, टॉय ट्रेन प्रबंधन, गाइडिंग और स्थानीय उत्पादों की बिक्री से ग्रामीण क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को सीधा लाभ मिलेगा।

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