
बदायूं : मेला ककोड़ा धार्मिक परंपराओं और सनातन संस्कृतिका प्रतीक बना हुआ है। श्रद्धा और आध्यात्मिकता के रंगों में पूरी तरह रचा-बसा दिखाई दे रहा है। गंगा किनारे रेत की सफेद चादर पर तंबुओं का विशाल नगर साकार हो चुका है, जहां हर दिशा से उमड़ती श्रद्धालुओं की भीड़ ने पूरे क्षेत्र को भक्ति की ऊर्जा से भर दिया है। गंगा तट पर भोर होते ही श्रद्धालु स्नान और पूजा-अर्चना के लिए उमड़ पड़ते हैं।

हर हर गंगे के उद्घोष से पूरा वातावरण भक्तिमय हो जाता है। भक्त दूर-दराज साधु संत महात्मा श्रद्धालु विभिन्न शहरों और जिलों और प्रदेशों से ट्रैक्टर-ट्रॉलियों, कारों, मोटरसाइकिलों और यहां तक कि पैदल यात्रा कर इस पावन धाम तक पहुंच रहे हैं। गंगा में जलस्तर अपेक्षाकृत कम होने के बावजूद श्रद्धालुओं का उत्साह कम नहीं हुआ है। भक्तजन तट पर दीप प्रवाहित कर, पुष्प अर्पित कर और कन्याओं को दान-दक्षिणा देकर लोककल्याण की प्रार्थना कर रहे हैं। श्रद्धालुओं ने प्रशासन से मांग की है कि मां गंगा में शीघ्र अतिरिक्त जल छोड़ा जाए ताकि स्नान सुचारू रूप से हो सके।

मेले की भव्यता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। मेला रंगीन रोशनी और झिलमिल सजावट से सजाया गया है। प्रशासनिक अधिकारी लगातार व्यवस्थाओं की निगरानी कर रहे हैं। सुरक्षा के लिए पुलिस बल चौकस है, वहीं चिकित्सा दल और आपात सेवा इकाइयां निरंतर सक्रिय हैं। मीना बाजार में इस समय जबरदस्त रौनक है। महिलाएं श्रृंगार और गृहसज्जा के सामान की खरीदारी में व्यस्त हैं। बच्चों के लिए झूले, खिलौने, मौत का कुआं और जादू के खेल आकर्षण का केंद्र बनें हुए हैं। लोककला, कठपुतली नृत्य और भजन-कीर्तन के कार्यक्रम मेले को सांस्कृतिक रंगों से सराबोर कर रहे हैं। गंगा तट के आसपास लगी मिठाइयों और प्रसाद की दुकानों पर भीड़ का आलम यह बताता है कि ककोड़ा मेला श्रद्धा और भक्ति का तीर्थ है। जलेबी, पेठा, खजला, पूड़ी-सब्जी और देसी व्यंजन श्रद्धालुओं को लुभा रहे हैं। रात होते ही तंबुओं की कतारें और रंगीन लाइटों से जगमगाता मेला किसी आस्था नगरी से कम नहीं लगता। चारों ओर रोशनी, भजन, घंटों की ध्वनि और गंगा आरती का दिव्य दृश्य मन को मोह लेता है।
कुल मिलाकर, मेला ककोड़ा आज भारतीय संस्कृति, भक्ति और लोक परंपराओं का जीवंत प्रतीक बन चुका है।
