सहसवान – लाकडाउन के चलते काम मिलना भी मुश्किल सरकारी योजनाओं का लाभ भी नाम मात्र को मिल रहा है । ललिता पत्नी मुकेश निवासी मोहल्ला शहवाजपुर बिजली घर के पास दिल्ली मेरठ राजमार्ग पर स्थित एक टूटे मकान मे अपने बच्चों के साथ रहती गरीब का घर तो सड़क मे चला गया पड़ोसी के टूटे मकान मे रहती है ललिता के घर मे मात्र एक चारपाई है कुछ बर्तन मात्र है राशन मिला केवल बारह किलो क्या यह सरकारी मदद की हकदार नहीं कम्यूनिटी किचिन मे खाना तो बनता है लेकिन इस गरीब परिवार तक नहीं पहुँच पाता क्या ये प्रधानमंत्री आवास की हकदार नहीं लेकिन गरीब की कोन सुनता है । ललिता का कहना है की जब उसके पति को काम मिलता है तभी उसका चूल्हा ठीक जल पाता है भला हो पड़ोस के दूकानदारों का जो सामान उधार दे देते हैं । अब कहा है सत्ताधारी और विपक्षी नेता इस महामारी के दोर मे कोई गरीबों की मदद के लिए कोई आगे नहीं आया समाजसेवी भी गायव है । लाकडाउन के इस दोर मे जहाँ एक तरफ धनवान के लिए पैसा उसके रसूक का परिचायक है तो वही गरीब के पेट पालने का साधन है ये पैसा , एक तरफ कुछ लोग पैसे पैसे के लिए मोहताज है और दूसरी तरफ एक वर्ग ऐसा है जिसके पास इतने पैसे हैं की वो खुद गिनती भी नहीं कर पाता. एक गरीब दिन भर परिश्रम करता है पर दिन के अंत में इतने पैसे नहीं कमा पता की वो अपने घर वालों का पालन पोषण कर सके , उसकी गरीबी ही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी होती है या उसका अभिशाप है .इस दुनिया की विडंबना ये है की यहाँ सब पैसे से चलता है चाहे वो रिश्तेदारी या अपनापन क्यूँ न हो सभी लोगो से अपील है कि अपने आस पास देख ले कोई भूंखा न रह जाये ।