समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय सचिव व पूर्व मंत्री आबिद रजा प्रेस के माध्यम से कहना चाहते हैं
बदायूँ। 20 प्रतिशत मुसलमान आखिर कब तक टिकट का मोहताज बना रहेगा। क्या मुसलमान के हिस्से में राजनीति में पोस्टर लगाना, नारे लगाना, कुर्सिया बिछाना, माईक व टैण्ट लगाना ही बचा है। गठबंधन करके मुसलमान की अनदेखी यह सोचकर और की जाती है कि “अब मुसलमान जायेगा कहाँ”।
कई चुनाव में गठबंधन करने के बावजूद जीत हासिल तो नहीं हो पा रही है लेकिन मुसलमान वोट की कद्र, कीमत और एहमियत जरूर खत्म होती जा रही है। लखनऊ और दिल्ली में बैठकर बिना मुसलमान लीडर के मुसलमान कैसे मिले उसकी जबरदस्त Planing कर ली जाती है। मजबूत मुसलमान लीडर को टिकट ना देना पड़े, मुसलमान लीडर अगर नाराज हो तो उनकी जायज बातों पर भी नेताओं को राजी ना करना पड़े, इसलिए भी गठबंधन किया जाता है। पूरे पाँच साल मुसलमान की जायज बातो पर आवाज तक नहीं उठाई जाती मुसलमानों के हम में कोई धरना प्रदर्शन तो छोड़ो कोई व्यान तक जारी नहीं किया जाता। चुनाव नजदीक आते ही कहीं मुसलमान 5 साल अपनी आप बीती पर शिकायत करके नाराज ना हो। उसके वोट देने के विकल्प खत्म करने के मकसद से गठबंधन करके मुसलमान को वे वोट देने पर मजबूर किया जा रहा है जो अल्लाह की नजर में गलती नहीं ब्लकि गुनाह है।
गठबंधन करना अच्छी बात है लेकिन गठबंधन करके मुसलमानों को टिकट की हिस्सेदारी को कम करना बेहतर नहीं है। सिर्फ उन सीटो पर बहुत मजबूरी में टिकट दिया जाता हैजहाँ 50 प्रतिशत से अधिक मुसलमान है। बरेली मण्डल मुस्लिम बाहुल्य होने के बावजूद किसी मुसलमान को टिकट ना दिया जाना P.D.A फार्मूले को साबित नहीं करता है और ना ही पार्टी का MY को साबित करता है। P.D.A से (A) गायब MY से (M) गायब। बदायूँ जिले में 2009 में बदायूँ लोकसभा में शेखूपुर विधानसभा कटकर गुन्नौर जुड़ने के बाद बदायूँ लोकसभा से मुसलमान का टिकट तो काट दिया लेकिन आंवला लोकसभा में लगभग 5 लाख मुसलमान होने के बावजूद भी आज तक किसी मुसलमान को टिकट नहीं दिया जाना यह मुसलमानों के साथ खुली ना इंसाफी है। बदायूँ जिले में नगर निकाय चुनाव में मुसलमानों के साथ नाइंसाफी की हद तो जब हो गयी जब बदायूँ जिले में ग्यारह मुसलमान चेयरमैन बने जिनसे पूरे पाँच साल काम लेने के बावजूद एन वक्त पर टिकट नहीं दिया गया। जबकि पूरे प्रदेश में टिकट बाटे गये सिर्फ बदायूँ जिले में ही टिकट नहीं दिये गये। जब प्रदेश में सरकार थी तब पूरे जिले में ब्लाक प्रमुखी के चुनाव में भी किसी मुसलमान को टिकट नहीं दिया गया।
किसी भी चुनाव के नजदीक आते ही हर विधानसभा में 25-50 मुसलमानों को तरह-तरह के लालच देकर आम मुसलमान को गुमराह करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
किसी भी चुनाव के नजदीक आते ही हर विधानसभा में 25-50 मुसलमानों को तरह-तरह के लालच देकर आम मुसलमान को गुमराह करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
राजनीति में मुसलमान जिस पार्टी को वोट नहीं दे रहा वह सत्ताधारी पार्टी मुसलमान की मुखालकत कर रही है। जिसे मुसलमान वोट दे रहा है। वह भी मुसलमान के साथ जायज बातों पर भी खड़े होने को तैयार नहीं है। “दुश्मन दुश्मनी निभा रहा है, दोस्त दोस्ती निभाने को तैयार नहीं”। मुसलमान को सिर्फ वोट देने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। इसलिए मुसलमान को अब नये सिरे से सोचना होगा और अगर वक्त रहते नहीं सोचा तो आने वाली नस्ले हमें और आपको (मुसलामन) को कभी माफ नहीं करेगी।