मुकेश मिश्रा की✍🏻 से

बदायूँं/उत्तर प्रदेश
सहसवान (बदायूँं) : ऐ कोरोना तेरा कैसा स्वरूप एवं स्वाभाव है कि जो अपने आप में अपने परिवार का बोझ लिए जी रहा है जिसके कंधे पर अपने परिजनों के भरण-पोषण करने का बोझ है जिसके सर पर न बदन न तन पर कपड़े न उदरछुधा शांत करने के लिए रोटी यानी रोटी,कपड़ा, मकान इन तीनों से वंचित अपने परिवार की जिम्मेदारियों के बोझ से दबी झुकी कमर के साथ बैसाखियों के सहारे जिंदगी जी रहा है को भी तेरे कोप का शिकार होना पड़ रहा है तू कितना निर्दयतापूर्वक इन पर अपनी क्रूर वक्र दृष्टि डाल रहा है। जिसके कारण यह तेरी द्रष्टि पड़ते ही घर मकान क्या शमशान भूमि में भी जगह पाने से वंचित रह जाते हैं।पर हम तुझ पर नाराज़ नहीं है तू सही कर रहा है तेरा फैसला भी सही है जो चारों तरफ से उपेक्षित हो सबके लिए बोझ हो वह अगर तेरे मुहब्बत का शिकार हो इन मुशीबतो से छुटकारा पा रहा है तो उसके लिए तू वरदान है। क्योंकि ऐसे लोगों के जाने पर किसी को कोई अंतर नहीं पड़ता जिसके ऊपर पड़ता है वह दो-चार दिन रो गा कर शांत हो जाएंगे पर तुझसे अनुरोध है कि तो भ्रष्टाचार ,को धोखे से भी नहीं छू लेना नहीं तेरा वजूद इसकी तपन पे जलकर भस्म हो जाएगा उसके बाद अगर तूने राजनेताओं को छूने की जुर्रत दिखाई तो तेरा वह हाल हो जाएगा की तेरी सात पुस्तो तक की तेरी नस्लें तक तुझे पहचान नहीं पाएंगी। वैसे तो सावधान है यह भी सभी ने हो गये य हो रहे विधानसभा से लेकर पंचायत चुनावों में तेरी महिमा देख लिया है कि तू कितना बड़ा चालाक काइयां है इतनी भीड़ में तेरी हिम्मत नहीं पड़ी पड़ती भी कैसे तुझे डर था कि कहीं उल्टा इनके वायरस तेरे को ही खत्म न कर दे पर तूं चिंता मत कर पंचायत चुनाव भी समाप्त हो रहे हैं तू आजाद हैं तेरा नाम जिसका डंका चारों तरफ बज रहा है तू खुल कर घूम सकता है तेरी धमक से रथ पहिया थम जाएंगे विकास की गति रूक जाएगी और रूक जाएगी आमजन की जिंदगियों की शासें पर तेरी सेहत में क्या फर्क पड़ता है य उन एसी के बंद कमरों में बैठकर नीति बनाने वालों पर य उन भ्रष्ट अधिकारियों में जो इस महामारी में भी अपने कर्तव्यों से मुंह मोड़ कर कफ़न तक में अपनी अतृप्त आत्माओं की भूख मिटाने में लगे हैं। मुनाफाखोरो के लिए तो तू किसी भगवान से कम नहीं है क्योंकि जिस तरह रामनाम के सहारे लोग भवसागर पार कर जाते हैं ठीक उसी तरह यह तेरे ही गुण गाते हैं और तेरे ही नाम का सहारा लेकर जमाखोरी, मुनाफा खोरी करते हैं और तेरी ही यह महिमा है कि यह लोग सु्राक्षित महफूज रहते हुए अपने कार्य को अंजाम देने में लगे हैं। और आम जनमानस सिसकियां ले ले आहिस्ता आहिस्ता शमशान की ओर बढ़ रहा है पर कमबख्त वहां भी इनलोगो के लिए जगहें नहीं बचा से भगवान ऐसे लोगों को अपने चरणों में स्थान देना व उनकी आत्माओं को शांति क्योंकि इस धरा में तेरे शिवा इनका कोई नहीं है।