श्री मद्भागवत कथा का छठा दिन यह जीव ब्रम्हा के साथ दिव्य मिलन का महोत्सव हैं। राम स्नेही मिश्र मीनू रस्तोगी द्वारा आयोजित गोपाल धरमशाला मोहल्ला ठेर में कथा के छठवें दिवस में उद्धव गोपी संवाद और श्री कृष्ण- रुक्मणी विवाह प्रसंग हुआ।

सम्भल। श्री भागवत महापुराण कथा के छठवें दिवस में व्यासपीठ पर आसीन श्री राम स्नेही मिश्रा जी महाराज ने रासलीला, उद्धव गोपी संवाद, श्री कृष्ण- रुक्मणी विवाह प्रसंग का व्याख्यान करते हुए कहा जीव और ब्रम्हा की एकता का नाम ही रास है। यह जीव ब्रम्हा के साथ दिव्य मिलन का महोत्सव हैं। रूकमणी जीव है और श्री कृष्ण ब्रम्हा है दोनों का मिलन है रूकमणी मंगल हैं।
महाराज ने कहा कि यह कोई साधारण विवाह नहीं था, बल्कि परमात्मा का विवाह था। परमात्मा प्रेम से मिलता है। रूकमणी मन ही मन परमात्मा के चरणों में प्रेम करती थी लेकिन रूकमणी का बड़ा भाई रूकमणी का विवाह शिशुपाल के साथ करना चाहता था। रूकमणी कोई साधारण स्त्री नहीं थी। वह साक्षात महालक्ष्मी का अवतार थी और जब रूकमणी ने देखा कि भाई हठ पूर्वक विवाह शिशुपाल के साथ कराना चाहते हैं जिससे मेरे पिता की इच्छा नहीं है, तो रूकमणी ने एक ब्राह्मण के माध्यम से परमात्मा श्री कृष्ण के पास इस संदेश को भेजा। इस संदेश में रूकमणी ने कहा कि परमात्मा मैं जन्म जन्मांतरो से आपके चरणों की दासी हूँ।


आप मुझ पर कृपा कर मुझे अपने चरणों में आश्रय देने की कृपा करें। जब यह संदेश श्री कृष्ण को प्राप्त हुआ तो उन्होंने ब्राह्मण को ससम्मान विदा कर स्वयं पीछे से कुंडलपुर के लिए चले इधर रूकमणी जब मन में विचार करती है कि वह ब्राह्मण परमात्मा के पास मेरा संदेश लेकर पहुंचा अथवा नही तभी उन्होंने देखा कि जिस ब्राह्मण को उन्होंने द्वारिका भेजा था वह ब्राह्मण लौटकर आ गया। रूकमणी के पूंछने पर उसने बताया कि श्री कृष्ण ने आपका का संदेश सुन लिया है और वे कुंडलपुर आ रहे हैं। कुछ ही समय के बाद श्री कृष्ण कुंडलपुर को आते हैं। रूकमणी के पिता भीष्मक को जब यह बात पता चलती है तो उनकी प्रसन्नता का ठिकाना नहीं रहता है वे बड़े प्रसन्न होते हैं।
संगीतमय श्री मद्भागवत कथा के छठवें दिन कथावाचक ने भागवत कथा के महत्व को बताते हुए कहा कि जो भक्त प्रेमी कृष्ण-रुक्मणी के विवाह उत्सव में शामिल होते हैं उनकी वैवाहिक समस्या हमेशा के लिए समाप्त हो जाती है। जीव परमात्मा का अंश है। इसलिए जीव के अंदर अपार शक्ति रहती है। यदि कोई कमी रहती है, तो वह मात्र संकल्प की होती है। संकल्प एवं कपट रहित होने से प्रभु उसे निश्चित रूप से पूरा करेंगे। भागवत कथा में कथावाचक श्री राम स्नेही मिश्र ने कथा में उद्धव चरित्र का वर्णन करते हुए कहा। उद्धव साक्षात ब्रहस्पति के शिष्य थे। मथुरा प्रवास में जब श्री कृष्ण को अपने माता-पिता तथा गोपियों के विरह दुख का स्मरण होता है तो उद्धव को नंदवक गोकुल भेजते है। गोपियों के वियोग-ताप को शांत करने का आदेश देते है। उद्धव सहर्ष कृष्ण का संदेश लेकर ब्रज जाते है और नंदिदि गोपों तथा गोपियों को प्रसन्न करते हैं और श्री कृष्ण जी के प्रति गोपियों के कांता भाव के अनन्य अनुराग को प्रत्यक्ष देखकर उद्धव अत्यंत प्रभावित होते है।वे श्री कृष्ण का यह संदेश सुनाते हैं कि तुम्हे मेरा वियोग कभी नहीं हो सकता,क्योंकि मैं आत्मरूप हूॅं। सदैव मेरे ध्यान में लीन रहो। तुम सब शून्य शुद्ध मन से मुझ में अनुरक्त रहकर मेरा ध्यान करने में शीघ्र ही मुझे प्राप्त करोगी। श्री मद्भागवत कथा के संगीतमय वातावरण को भक्तिमय बना दिया। उपस्थित भक्तजन नाचने पर मजबूर होकर भगवान श्री कृष्ण का गुणगान करने लगे। गोपाल धर्मशाला में आयोजित कथा स्थल पर नगरवासियों की बहुत अधिक भागीदारी रही और सभी ने आनंदमय और भक्तिमय वातावरण में श्री कृष्ण जी की भक्ति में डूबकर कथा का श्रवण किया।तदुपरांत छप्पन भोग का प्रसाद

वितरित किया गया। जिसे पाकर सभी भक्तगण धन्य हो गए। कथा श्रवण के दौरान मीनू रस्तोगी, सौरभ रस्तोगी, विष्णु कुमार, डॉ० डी०एन० शर्मा, शिव शंकर शर्मा, सुभाष चंद शर्मा, अजय कुमार शर्मा, अवधेश गर्ग, शोभा गर्ग, अनुराग सुधांशु, मनोज गुप्ता, दिलीप गुप्ता, सुनीता यादव, अरुण अग्रवाल,अतुल शर्मा, अरविंद शुक्ला, अंकुर रस्तोगी, मंजू रावत, आशा गुप्ता ,भारत मिश्रा, पंकज सांख्यधर, सरिता गुप्ता, रूपाली गुप्ता, सौरभ गुप्ता, किरण गर्ग, नीरू चाहल, अतुल शर्मा, बबीता भारद्वाज, अमित शुक्ला, राजेंद्र गुर्जर, विनोद अग्रवाल, श्याम शरण शर्मा आदि उपस्थित रहे।