भारतीय आईसीएआर-भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, इज्जतनगर ने अखिल भारतीय राज्य पशुपालन निदेशक इंटरफ़ेस मीट-2023 का आयोजन किया। इस इंटरफेस मीट में देश के 28 राज्यों तथा 6 केंद्र शासित प्रदेशों के पशुपालन विभाग के निदेशकों एवं आयुक्तों ने भाग लिया।
मुख्य अतिथि परषोत्तम रूपाल केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री, भारत सरकार ने इस कार्यक्रम के आयोजन के प्रयास की सराहना की है जो देश में अपनी तरह का पहला आयोजन है इसके लिए उन्होंने संस्थान के निदेशक डा. त्रिवेणी दत्त के प्रति आभार व्यक्त किया। उन्होंने राष्ट्रीय मांग को पूरा करने के लिए वैक्सीन और निदान विकसित करने के लिए वैज्ञानिकों के प्रयासों की सराहना की। उन्होंने आग्रह किया कि आईवीआरआई द्वारा किए गए सराहनीय कार्यों के अनुरूप, राज्य के विभागों को भी राज्यों की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए राज्य विश्वविद्यालयों के सहयोग से अनुसंधान गतिविधियां शुरू करने के लिए गंभीर प्रयास करना चाहिए।
उन्होंने आगे सुझाव दिया कि मानव जन्म-मृत्यु रजिस्टर की तरह पशुओं के जन्म और मृत्यु खाते के लिए पशु रजिस्टर तैयार करने की आवश्यकता है। उन्होंने युवा छात्र को पशुचिकित्सक होने पर गर्व महसूस करने के लिए प्रेरित किया।
उन्होंने बताया कि प्रधान मंत्री के मार्गदर्शन में कृषक समुदाय की मदद के लिए मंत्रालय द्वारा किसान क्रेडिट कार्ड, पशुओं को मुफ्त टीका आदि जैसी पहल शुरू की गई हैं। इसके अलावा, मंत्रालय ने ज्ञान के उन्नयन के लिए क्षमता निर्माण आयोग भी शुरू किया है। उन्होंने राज्य पशुपालन निदेशकों से भविष्य की चुनौतियों से निपटने के लिए विभिन्न हितधारकों को नवीनतम तकनीकों से लैस करने के लिए राज्यों में क्षमता निर्माण कार्यक्रम लागू करने का आग्रह किया। उन्होंने आगे आग्रह किया कि कृषक समुदाय की प्रभावी ढंग से सेवा करने के लिए एक परिवार के रूप में काम करने की आवश्यकता है।
इस अवसर पर डा. अभिजीत मित्रा, पशुपालन आयुक्त (डीएएचडीएण्डएफ) मत्स्य पालन और डेयरी मंत्रालय ने निदेशक पशुपालन और अनुसंधान संस्थान को एक मंच पर लाने के लिए ऐसे कार्यक्रम आयोजित करने पर प्रसन्नता व्यक्त की। उन्होंने आगे इस बात पर जोर दिया कि आईवीआरआई को एएमआर से निपटने के लिए अधिक केंद्रित अनुसंधान करना चाहिए और एंटीबायोटिक के उपयोग को कम करने वैकल्पिक वनस्पति आधारित उपचारों के प्रयोग का सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि परजीवी नियंत्रण के अनुसंधान के साथ-साथ नए वैक्सीन विकास मंच की भी खोज की जानी चाहिए। उन्होंने इस बात की सराहना की कि आईवीआरआई खुले में घूमने वाले जानवरों की समस्या से निपटने के लिए कार्य योजना सुझा सकता है।
संस्थान के निदेशक डॉ. त्रिवेणी दत्त ने कहा कि संस्थान ने देश से सीबीपीपी, डोरिन और अफ्रीकन हॉर्स सिकनेस जैसी भयानक बीमारियों के उन्मूलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने आगे बताया कि संस्थान ने 50 से अधिक टीके विकसित किए हैं, जिनमें ब्रूसेला एबॉर्टस एस19 स्ट्रेन, गोट पॉक्स, पीपीआर और क्लासिकल स्वाइन फीवर के माध्यम से, देश 8500 करोड रुपये से अधिक की बचत कर रहा है। संस्थान ने 50 से अधिक जीवनरक्षक टीकों का उत्पादन किया है।
डा. दत्त ने आगे बताया 2019 में माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा शुरू किए गए राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम (एनएडीसीपी) के तहत, आईवीआरआई को विभिन्न निर्माताओं द्वारा आयातित या घरेलू उत्पादित टीकों की गुणवत्ता परीक्षण का एक और विशेष कार्य दिया है। वर्तमान में 34 टीकों (वायरल-23 और बैक्टीरियल-11) की गुणवत्ता का परीक्षण किया जा रहा है। संस्थान ने आने वाले दिनों में एनएडीसीपी के तहत ब्रूसेल्ला और पीपीआर वैक्सीन के 200 बैच, एफएमडी के 400 बैच और सीएसएफ वैक्सीन के 50 बैच का परीक्षण करने का लक्ष्य रखा है। इसके अलावा, आईवीआरआई देश के 21 राज्य जैविक, 8 निजी निर्माताओं को प्रशिक्षण और बीज संवर्धन, एंटीजन और एंटीसीरम भी प्रदान कर रहा है। संस्थान वन्य जीव सहित राष्ट्रीय सलाह भी प्रदान करता है और बीमारी के प्रकोप पर विशेषज्ञ की राय भी प्रदान करता है।
संयुक्त निदेशक (प्रसार शिक्षा), डॉ रूपसी तिवारी ने मुख्य अतिथि और विशिष्ट अतिथि और अन्य गणमान्य व्यक्तियों को इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए सहमति देने के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने बताया कि इस इंटरफ़ेस मीट में 28 राज्यों और 5 केंद्र शासित प्रदेशों के पशुपालन निदेशकों ने भाग लिया है। उन्होंने कहा कि इस इंटरफेस मीट का उद्देश्य पशुधन क्षेत्र में उत्पादकता को बढ़ाने तथा राज्य के पशुपालन विभागों को संस्थान द्वारा विकसित तकनीकियों से अवगत कराना है। उन्होंने आईवीआरआई के साथ काम करने के लिए निदेशक, पशुपालन द्वारा पहचाने गए विभिन्न विशिष्ट क्षेत्रों जैसे सहयोगी परियोजनाओं, इथेनोवेटरनरी में अनुसंधान, निदान और उपचार के लिए नवीनतम तकनीक, टीके, नस्ल सुधार को प्रस्तुत किया।
इसके बाद तकनीकी सत्र शुरू हुये जिसमें तकनीकी सत्र प्रथम डॉ. गौरव कुमार शर्मा ने आईवीआरआई द्वारा प्रदान की जाने वाली विभिन्न नैदानिक और स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं को प्रस्तुत किया गया। संयुक्त निदेशक, शोध डा. एस.के. सिंह ने पशु और पशु चिकित्सा विज्ञान में नई शोध पहल की जानकारी दी। आईटीएमयू प्रभारी डा. अनुज चौहान ने आईवीआरआई के आईपी पोर्टफोलियो का संक्षिप्त विवरण दिया तथा पशु पुनरूत्पादन विभाग के विभगाध्यक्ष डॉ.एम.एच.खान द्वारा तेजी से आनुवंशिक सुधार के लिए सहायक प्रजनन तकनीकें प्रस्तुत की गईं।
विभिन्न निदेशकों ने अपने राज्यों में पशु पालन, रोग निदान और पशु चिकित्सकों के क्षमता निर्माण से संबंधित समस्याओं पर चर्चा की। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि जम्मू डिवीजन में उत्कृष्ट डेयरी जानवरों की अनुकूलता जैसे उनकी आवश्यकता के आधार पर विभिन्न शोध योग्य मुद्दे उठाए जाएं। गर्भाशय निदान के लिए तैयार किट का उपयोग करने, खाद्य स्वच्छता प्रयोगशाला का विकास, नए और उभरते पशुधन रोगों के लिए स्वदेशी टीकों का विकास, अधिक उत्पादन के लिए गैर-डिस्क्रिप्ट मवेशियों का आनुवंशिक उन्नयन, जीनोमिक चयन के लिए डीएनए परीक्षण प्रयोगशाला और प्रजनन के लिए शुरुआती बुल चयन, सिल्वैटिक रेबीज के परिसंचरण और उभरते वायरल रोग के लिए जीनोमिक अनुक्रम, अफ्रीकी स्वाइन फीवर डायग्नोसिस और वायबल वैक्सीन के विकास, ब्रूसेला के साथ एफएमडी, एचएस और बीक्यू के लिए संयुक्त वैक्सीन उत्पादन, सभी जानवरों के प्रजनन प्रबंधन, वेक्टर नियंत्रण के लिए फेरोमोन आधारित उत्पादों से संबंधित एथनो-वेटनरी चिकित्सा पद्धति, खाद्य सुरक्षा और रोग नियंत्रण का पता लगाने की क्षमता के लिए पशु बायोमेट्रिक्स, ‘सस्टेनेबल रिलीज/डिपो’-एफएमडी टीका जो लंबी अवधि (छह महीने के भीतर) के लिए प्रतिरक्षा प्रदान कर सकता है, इलेक्ट्रॉनिक डोंगल (डिवाइस) का विकास जो निष्क्रिय आरएफआईडी टैग आदि को पढ़ने के लिए स्मार्ट फोन पर प्लग किया जा सकता है।
कार्यक्रम का संचालन डा. रोहित कुमार द्वारा किया गया तथा धन्यवाद ज्ञापन डा. अमित कुमार द्वारा दिया गया। तकनीकी सत्रों में प्रथम सत्र की अध्यक्षता संयुक्त निदेशक, शैक्षणिक डा. एस.के. मेंदीरत्ता तथा द्वितीय सत्र की संयुक्त निदेशक प्रसार शिक्षा डा. रूपसी तिवारी द्वारा की गयी। विभिन्न सत्रों में संस्थान की प्रस्तुति के लिए प्रधान वैज्ञानिक डा. बबलू कुमार द्वारा धन्यवाद ज्ञापित किया गया। इस अवसर पर संस्थान के संयुक्त निदेशक, विभागाध्यक्ष, वैज्ञानिक एवं छात्र उपस्थित रहे।