जननी सुरक्षा योजना का गरीब गर्भवती महिलाओं को नही मिल रहा लाभ
बदायूँ । शहरी ग्रामीण क्षेत्रों की गरीब गर्भवती महिलाओं का सुरक्षित प्रसव सरकारी अस्पतालों में हो सके, इसकी जिम्मेदारी सरकार ने आशाएं बहुओं को दी थी।लेकिन ज्यादा कमीशन के लालच में आशा बहुएं प्रसूताओं की डिलीवरी निजी अस्पताल में कराती हुई देखी जा रही हैं और प्राइवेट अस्पतालों में डिलीवरी होने की वजह से जननी सुरक्षा योजना का गरीब गर्भवती महिलाओं को लाभ नही मिल रहा है।
आशा गर्भवती महिलाओं को गुमराह करके कैसे ले जाती है प्राइवेट अस्पताल
सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में अधिकतर डिलीवरी के लिए आई प्रसूताओं को संसाधनों की कमी के चलते बड़े सरकारी अस्पतालों में रेफर कर दिया जाता है। इस दौरान आशा बहुएं उनको सरकारी अस्पतालों में ले जाने के बजाय निजी नर्सिंग होम ले जाती है। आशाएं 50 प्रतिशत कमीशन के लालच में प्राइवेट अस्पताल में भर्ती करा देती हैं। जबकि सरकारी अस्पताल में डिलीवरी कराने पर आशाओं को 600 रुपए की धनराशि प्राप्त होती है।
मगर प्राइवेट अस्पताल में डिलीवरी कराने पर 8000 हजार रुपए का कमीशन मिलता है।
आशाएं प्रसूता के स्वजन से कहती हैं कि यहां जच्चा बच्चा दोनों को खतरा है सरकारी अस्पताल में कोई देखने वाला नहीं है सीएचसी के डॉक्टर ने कहा कि शहर के प्राइवेट अस्पताल में दिखाओ क्योकि तुमारे मरीज का ऑपरेशन होगा और खून की भी कमी है। इसलिए यहां आए है।” इसका हवाला देकर उसे निजी नर्सिंग होम ले जाती हैं वहां पहुंचकर उसे भर्ती करा देती हैं पहले नॉर्मल डिलीवरी की बात होती है उसके बाद डॉक्टर कहते हैं मरीज की स्थिति ठीक नहीं है बहुत जल्द ऑपरेशन करना होगा यह बात सुनकर प्रसूता के स्वजन घबरा जाते हैं आशाएं इस तरीके से मरीज से डिलिंग करती है।
आशाओं का जांच और डिलीवरी में फिक्स कमीशन
सूत्रों ने बताया है कि नार्मल डिलीवरी में आशाओं को 50 प्रतिशत कमीशन मिलता है और ऑपरेशन में 40 प्रतिशत कमीशन मिलता है। आशा को सरकारी अस्पताल में डिलीवरी कराने पर 600 की धनराशि प्राप्त होती है। जबकि प्राइवेट अस्पताल में डिलीवरी कराने पर 8000 हजार रुपए कमीशन मिलता है। इसकी वजह से आशाएं गर्भवती महिलाओं का ज्यादातर प्राइवेट अस्पतालों में ऑपरेशन कराती है, क्योंकि उनको वहां से ज्यादा कमीशन मिलता है। गर्भवती महिला की हर जांच में 20 से 30 प्रतिशत कमीशन मिलता है। सरकारी से उन्हें पैसा नहीं मिलता इसलिए प्राइवेट अस्पताल में ले जाती है। जांच और डिलीवरी कराती है। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी आशाओं पर नकेल कसने में नाकाम साबित हो रहे।
इस संबंध में सीएमओ डॉ प्रदीप वार्ष्णेय का कहना है कि आशाओं के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिल रहा है इसलिए कार्रवाई करना संभव नहीं है।