ताकि हमारे मरे हुए ज़मीर जिंदा हो सके

सहसवान। बताते चलें कि कर्बला महज एक जंग का मैदान ही नही था, यहां रिश्तों की भी बुनियाद अल्लाह रब्बुल इज्जत अपनी मख़लूक़ को सिखा रहा था।
सोचिये आज हमारे घरों में रिश्ते जिस तरह से खोखले होते जा रहे है इसकी एक वजह ये भी है के हमे कुछ लोगों ने हमेशा ज़िक्रे अहलेबैत से दूर रखा है।
कर्बला में क्या हुआ था इस सवाल के जवाब में हम जंग के हालात बयान कर देते है लेकिन आज के समाज को जो जरूरत है वो बयान नही किया जाता है

असल मे कर्बला का बयान सिर्फ मस्जिदों महफ़िलो और मजलिसों की मोहताज हो गई है जबकि इसकी सबसे ज्यादा जरूरत हमारे घरों में है, कर्बला में एक भतीजा अपने चाचा पर कुर्बान हो गया,बेटे बाप पर कुरबान हो गए, भांजे मामू पर अपनी जाने निछावर कर देते है,
सौतेले भाईयो ने अपनी गर्दन कटवा दी, बहन ने भाई के लिए अपने बच्चे निछावर कर दिए बिना हिचकिचाते हुए,
बाप बेटो के लिए आँसू की बरसात कर देता है,
छोटे छोटे मासूम अपने बड़ो के लिए जान दे देते है,
दोस्त अपने दोस्तों से पहले कुर्बान होने की गुज़ारिशे करते है।


इतनी शिद्दत की प्यास में चाचा अपनी भतीजी के लिए पानी लेने का खतरा उठाते है जबकि उनके खुद के मासूम प्यासे है।
गुलाम अपने आकाओं के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार थे और उनके मालिक उनके जनाजे पर ज़ार ज़ार रोते है,
माँ अपने बच्चो को अपने वक़्त के इमाम पे कुर्बान करने को अपना फ़र्ज़ समझते है। कर्बला हमे दर्स देती है के अगर ज़ालिम हुक़्मरान तुम्हारे सामने आ जाए तो अपना सर ज़ालिम के सामने ना झुकाओ मुनाफ़िक़ों को बेनकाब करने का नाम है कर्बला,
आले रसूल के कातिलों को बेनकाब करने का नाम है कर्बला, झूठो को आइना दिखाने का नाम है कर्बला,
जब भी इस्लाम पे मुसीबत आए खुद को अपने औलादों को कुर्बान करके इस्लाम को बचाने का नाम है कर्बला,

दोस्तो ये है कर्बला जो आज के दौर में हमारे घरों में गूंजना चाहिए। आज इस मतलबी दुनिया मे सगे का सगा नही हो रहा है, अक्सीरियत घरों मे हिस्से बटवारे की लड़ाईयां हो रही। कोई किसी का नही सुन रहा है। सोचो इमाम हुसैन हमे क्या सिखा कर गये।
हुसैन सिर्फ एक नाम नहीं, हुसैन ज़िंदगी जीने का तरीका है।

रिपोर्ट सैयद तुफैल अहमद