-चकमहमूद से कांवड़ यात्रा निकालने को लेकर विवाद हो गया। 100 कांवड़ियों का जत्था मुस्लिम बस्ती के रास्ते बदायूं के कछला जाने की तैयारी कर रहा था। मुहल्ले के मुस्लिमों ने इसे नई परंपरा बताते हुए आपत्ति जताई तो पुलिस पहुंची। एसएसपी प्रभाकर चौधरी ने कांवड़ियों से कहा कि 50 का जत्था बिना शोर-शराबा शाह नूरी मस्जिद के सामने से निकल जाएं। इस पर कांवड़िये तैयार नहीं हुए। कांवड़िये जबरन आगे बढ़े तो रोकने के लिए पुलिस को आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़े, जिससे भगदड़ मच गई।””ईमानदार और पुलिस के भ्रष्टाचार के खिलाफ डंका बजाने वाले एसएसपी प्रभाकर चौधरी बरेली में कानून व्यवस्था और कांवड़ को सकुशल निपटाने में फ्लाप साबित हुए। जोगी नवादा में
बवाल और कांवड़ियों पर लाठीचार्ज गलत बयान बाजी को लेकर शासन ने एसएसपी प्रभाकर चौधरी को हटा दिया है। रविवार रात मौके पर पहुंचे एडीजी पीसी मीणा और आईजी डॉ राकेश सिंह ने इंस्पेक्टर बारादरी अभिषेक सिंह और चौकी इंचार्ज अमित कुमार को सस्पेंड कर दिया है।””15 दिन से भड़क रही चिंगारी रोकने में नाकाम पुलिस, जिले भर में अघोषित कर्फ्यू के हालात
कांवड़ की शुरुआत से ही बरेली में चिंगारी भड़क रही थी। सिरौली अलीगंज आंवला के मनोना में कई दिन तक बवाल रहा। कावड़ियों का रास्ता रोका गया। इसके बाद जिले का सबसे संवेदनशील खैलम में भी कावड़ियों का रास्ता रोका गया। जोगी नवादा में एक सप्ताह में दो बार बवाल हो गया l पुलिस कांवड़ियों का रास्ता निकलवाने में फेल साबित हुई। इसके बाद पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे। लाठीचार्ज किया। महिला भक्तों को भी लाठियां मारी गई। इस पूरे मामले में बरेली के जनप्रतिनिधियों में पूर्व केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार, भाजपा के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष राजेश अग्रवाल, कैंट विधायक संजीव अग्रवाल, मेयर डॉ उमेश गौतम ने नाराजगी जताई। इसके बाद शासन ने एसएसपी प्रभाकर चौधरी को बरेली से हटा दिया है।
13 साल की नौकरी में 21 ट्रांसफर, मार्च में बने थे प्रभाकर बरेली के एसएसपी
प्रभाकर चौधरी 2010 बैच के IPS ऑफिसर हैं। सिर्फ 13 साल की नौकरी में आज उनका 21वा ट्रांसफर हुआ है। 13 मार्च को उन्होंने एसएसपी बरेली का कार्यभार संभाला था बरेली में उन्होंने पुलिस के भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया। लेकिन जनप्रतिनिधियों, मीडिया और जिले के संभ्रांत नागरिकों से उनकी दूरी बनी रही।
वह किसी से नहीं मिलते थे। एसएसपी की इसी कार्यशैली की वजह से वह अधिकतम एक साल मेरठ में रहे। बाकी अन्य जिलों में 4–6 महीने से ज्यादा नहीं रहे।
रिपोर्ट शिव प्रताप सिंह