मेडिकल कॉलेज में सभी वार्डो चूहों का है आतंक
ऑक्सीजन बिना गंभीर मरीज को चौथी मंजिल से दौड़ाया इमरजेंसी
बदायूं।मेडिकल कॉलेज की स्थापना होते ही लोगों में खुशी की लहर दौड़ गई थी परंतु अब यह अव्यवस्थाओें का अड्डा बन गया है। कोई भी देखरेख की व्यवस्थाएं राजकीय मेडिकल कॉलेज में नहीं हैं। दवाइयां बाहर से लिखी जा रही हैं।
भारतीय किसान यूनियन के मंडल प्रवक्ता राजेश कुमार सक्सेना ने आप बीती सुनाई
उन्होंने कहा कि जल्द ही व्यवस्थाएं न सुधरीं तो भाकियू आंदोलन को विवश होंगी।
जनपद में स्वास्थ व्यवस्था को लेकर शासन के दावे और जमीनी हकीकत एक-दूसरे के विपरीत नजर आ रहे हैं। शासन के दावों के बावजूद राजकीय मेडिकल कॉलेज और जिला अस्पताल में दवाओं की किल्लत बढ़ रही है। इमरजेंसी की महत्वपूर्ण दवाएं या तो खत्म हैं या फिर न के बराबर हैं। इमरजेंसी में दवाओं की उपलब्धता न होने के कारण मरीजों को जरूरी दवाओं के लिए बाहर भटकना पड़ता है इन दवाओं को मरीजों के परिजन महंगे दामों पर खरीदने के लिए मजबूर हैं।
देश में योगी के दूसरे कार्यकाल में स्वास्थ्य व्यवस्था की कमान डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक को सौंपी गई है। इसलिए इस बार ब्रजेश पाठक के मंत्री बनने के बाद लोगों को स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर काफी उम्मीदें हैं। सरकार के कई बड़े दावों के अनुसार, स्वास्थ व्यवस्था में सुधार होगा लेकिन, शासन के ये दावे जमीन पर दिखाई नहीं दे रहे हैं। सीएचसी, पीएचसी की बात ही छोड़िए बदायूं मेडिकल कॉलेज में ही दवाओं की भारी कमी है।अस्पतालों में मरीज चाहे सामान्य हों, ओपीडी के हों या फिर इमरजेंसी के सभी को दवा की समस्या से जूझना पड़ रहा है। शासन और कॉलेज प्रशासन की तरफ से इमरजेंसी सेवा में पर्याप्त दवा होने का दावा किया जाता है। लेकिन, वास्तव में इमरजेंसी में दवा न के बराबर मिल रही है।
मरीज के बेटे ने अपनी मां की सुनाई दर्द भरी कहानी:
राजाबाबू गांव खुर्रामपुर भमोरी थाना बजीरगंज का कहना है कि मेरी मां बिसौली रोड पर मुड़िया धुरेकी 15जुलाई को सड़क दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल हो गई थी। जिनको जिला अस्पताल भर्ती कराया था वहां हालत को गंभीर देखते हुए डाक्टरों ने राजकीय मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया उन्हे वहां भर्ती कराया गया मेडिकल कॉलेज में इलाज न मिलने के कारण मेरी मां ने तड़प तड़प कर जान दे दी।
राजाबाबू ने बताया कि मेरी मां को चौथी मंजिल से इमरजेंसी तक बिना लिफ्ट के जीने से स्टॉफ ने दौड़ाया जबकि मेरी मां की हालत इतनी खराब थी वह अपने पैरो पर खड़ी नही हो पा रही थी बिना ऑक्सीजन के एक पल चल नही पा रही थी। और उन्हें स्टॉफ ऊपर से नीचे पैदल दौड़ते रहे।बेदर्दी मेडिकल कॉलेज स्टॉफ को फिर भी रहम नहीं आया।
पट्टी से लेकर इंजेक्शन दवाइयां सब बाहर से मंगाई गई मेरी मां की हालत इतनी खराब थी उनकी हालत बिगड़ती चली जा रही थी जब मैं स्टाफ को बुलाने जाता था तो स्टाफ फोन चलाता रहता था और मुझे डाट फटकार के भगा देता था जाओ तुमारे मरीज को देख लेंगे। इलाज के अभाव और स्टॉफ की लापरवाही की वजह से मेरी मां ने तड़प तड़प कर दम तोड़ दिया।उन्होंने बताया कि यह मेडिकल कॉलेज के नाम पर एक बूचड़खाना बना हुआ है।
कुछ विशेष मरीजों को छोड़कर सभी को दवाएं बाहर से लिखते है:
सूत्र बताते हैं कि मरीज विशेष को छोड़कर अन्य लोगों को ये दवाएं बाहर से ही लानी पड़ती हैं. दिन में तो मरीजों को दवा बाहर से मिल जाती है. लेकिन, रात्रि के समय काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.शासन के दावों और जमीनी हकीकत में इतना अंतर क्यों है सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, यह सामने आया कि यहां आंकड़ों में खेल कर वाहवाही ली जाती है। शासन की नजरों में अच्छा बने रहने के लिए यहां के जिम्मेदार अपने अधिनस्थों से यह रिपोर्ट करवाते हैं कि यहां पर सब ठीक-ठाक है।यहां यह दिखाया जाता है कि सभी मरीजों को अंदर से दवा मिलती है।इसके के लिए एक खेल खेला जाता है। जानकार बताते हैं कि मांग के अनुरूप इमरजेंसी सेवा को दवा नहीं मिलती जितनी डिमांड होती है, उसके आधे से भी कम दवा मिलती है। कभी-कभी तो मांग के कई दिन बाद बहुत कम मात्रा में दवा दी जाती है। ऐसा करने से यह दिखाया जाता है कि हमारे यहां दवा की कोई कमी नहीं है। लेकिन, यहां धरातल की हकीकत इसकी उलटी है।
इस संबंध में कॉलेज के प्राचार्य डॉ.एनसी प्रजापति से फोन से संपर्क करने का प्रयास किया गया तो उन्होंने बताया कि मैं मीटिंग में हूं बाद में बात करूंगा।