सम्भल। शनिवार को मदरसा खलील उलूम जूनियर हाई स्कूल रायसत्ती संभल में एक प्रोग्राम का आयोजन किया गया जिसका उनवान था सीरत ए
हजरत इब्राहिम अली सलाम और एक आम मुसलमान जिसमें विभिन्न वक्ताओं ने अपने वक्तव्य से हजरत इब्राहिम अली सलाम की सुन्नत ओर ईद उल अजहा की अजमत को बयान किया,
जिसमे मोलाना मोहम्मद अली मिसबाही हजरत हाजरा अलेह सलाम के ऊपर बयान किया जिसमें उन्होंने बताया कि कैसे हजरत हाजरा और उनके बेटे हजरत इस्माइल (अह°) की सब्र और उनके इसताकामत ने उनके पैरो से दरिया बहा दिया और एक ऐसे कुआँ की बुनियाद डाली जिसको दुनिया आब् ए ज़मज़म के नाम से जानती हैं, और दुनिया भर के लोग इसको इज़्जत की नज़र से देखते हैं।
मौलाना राहत अज़ीज़ी ने अपने शानदार खिताब मे कहा कि ईदुल अज़हा मुसलमानो का एक पारंपरिक और संस्कृतिक त्योंहार हैं, यह पवित्र त्योहार मक्का मे हज्ज यात्रा की समापन का प्रतिक हैं, इसको इस्लामी महिनो का आखिरी महीने ज़िल्ल हिज्जा की 10th तारीख को मनाया जाता है और 8 तारीख से 12th तारीख तक तकबीर हर फर्ज़ नमाज़ के बाद पढ़ी जाती हैं, जिसका हर बालिग मुसलमान को पढ़ना ज़रूरी है।
स्कूल मैनेजर और अल जमीयतुल इस्लामिया खलील उलूम के चेयरमैन शरियातुल्ला (पूर्व विधायक संभल) ने अपने संबोधन मे कहा की आज की इंसानो को हज़रत हाजरा ( अ ह ०) की तरह फरमाबर और नेक वा सब्र करने वाली खातून से सिखना चाहिए, इस्लाम ने औरतो को आला मुकाम दिया हैं।

स्कूल के शिक्षको हाजरा जैसा सब्र करने वाला, इस्माइल (अह०) फरमाबरदार, और हज़रत इब्राहिम जैसा उसूल पसंद स्टूडेंट बनाने चाहिए।
विद्यालय के प्रधानाचार्य श्री जुनैद इब्राहिम ने अपने संबोधन में कहा कि ईद उल अज़हा इस्लाम का एक महत्वपूर्ण फर्ज है। इसको हिंदुस्तान में 29 जुलाई को मनाया जाएगा।
इस त्योहार का शाब्दिक अर्थ बलिदान का त्यौहार भी कहा जाता है।
यह त्यौहार पैगंबर इब्राहिम अलैहि सलाम के द्वारा अपने बेटे के बलिदान के प्रतीक के रूप में याद की जाती है हमें हजरत इब्राहिम और हजरत इस्माइल की सुन्नतों को जिंदा करना चाहिए और उनको अपने जीवन में उतारना चाहिए,या यू कहे कि पैगंबर हजरत इब्राहिम अलैहि सलाम ने अपने आप को खुदा की इबादत में समर्पित कर दिया था ।उनकी इबादत से अल्लाह इतने खुश हुए कि उन्होंने एक दिन पैगंबर हजरत इब्राहिम का इम्तहान लिया. अल्लाह ने इब्राहिम से उनकी सबसे कीमती चीज की कुर्बानी मांगी, तब उन्होंने अपने बेटे को ही कुर्बान करना चाहा. दरअसल, पैगंबर हजरत इब्राहिम मोहम्मद के लिए उनके बेटे से ज्यादा कोई भी चीज अजीज और कीमती नहीं थी।कहा जाता है कि जैसे ही उन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी देनी चाही तो अल्लाह ने उनके बेटे की जगह वहां एक दुम्बा (बकरे जैसा जानवर जो अरब देशो मे पाया जाता हैं) की कुर्बानी दिलवा दी।अल्लाह पैगंबर हजरत इब्राहिम मोहम्मद की इबादत से बहुत ही खुश हुए.उसी दिन से ईद-उल-अजहा पर कुर्बानी देने का रिवाज शुरू हुआ।


प्रोग्राम के अंत मे मोलाना मोहम्मद अली मिस्बाही ने कमेटी के सदर असरार बाबू जी की सेहत और मुल्क भर मे अमनो अमाँन दुआ कराई,और कमेटी के सदस्य श्री उरूज आलम साहब ने सभी लोगो का शुक्रिया अदा करा।
कार्यक्रम मे फैज़ान सैफी, खुशनुमा, अक्सा, शगूफी, हाफिज फैज़ान अजमली, नाज़िया, इलमा, मंतशा, दियानां आज़म,फातिमा, नगमा, सना, शबनम समेत सभी कर्मचारी मौजूद रहे।

सम्भल से खलील मलिक की रिपोर्ट