बदायूँ। काव्यदीप हिन्दी साहित्यिक संस्थान के तत्वावधान में स्काउट भवन, बदायूँ में स्व. वीरेन्द्र कुमार सक्सेना जी की जयंती पर काव्य सम्मेलन, सम्मान समारोह और काव्यदीप द्वारा प्रकाशित साझा संकलन ‘दरकते रिश्ते’ का विमोचन कार्यक्रम आयोजित किया गया। कविसम्मेलन के अध्यक्ष विनोद सक्सेना ‘बिन्नी’ थे।
माँ सरस्वती एवं स्व. वीरेन्द्र कुमार सक्सेना जी के चित्र पर माल्यार्पण कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। माँ शारदे की वंदना कवि कुमार आशीष ने प्रस्तुत की।
अध्यक्ष विनोद सक्सेना बिन्नी ने अपनी लेखनी के स्वर सुनाये-
रेत की मानिन्द ढहती जा रही है
ज़िन्दगी इक धुंध बनती जा रही है।
बदायूँ से प्रसिद्ध शायर अहमद अमज़दी ने पढ़ा-
नज़रों में तुम्हारी वो क्या थे ये बताती हो
आईना मुहब्बत का दुनिया को दिखाती हो
देता है मुबारकबाद यूँ दीप तुम्हें अहमद
तुम सालगिरह अपने पापा की मनाती हो।
बरेली वरिष्ठ कवि राजेश शर्मा ने सुनाया-
अगर घर में नहीं बेटी सभी सुख-चैन खोते हैं।
विदाई जब हो बेटी की पिता के होश खोते हैं।
मुरादाबाद से कवयित्री पल्लवी शर्मा ने वीरेन्द्र कुमार सक्सेना जी की स्तुति में अपनी रचना प्रस्तुत की-
संघर्षों से पा कर के विजय, शक्ति अकूत बन गये।
वीरेन्द्र कुमार सक्सेना जी, देव दूत बन गये।।
गौरव सक्सेना ने पिता पर रचना सुनाई-
जब दुनिया में मेरा कोई अस्तित्व न था,
तब मेरा सूरज बनकर चमक रहे थे तुम।
पीलीभीत से उमेश त्रिगुणायत ने अपनी हास्य रचना ने खूब वाहवाही प्राप्त की- अब से वाक्य यही हर माँ की जिव्हा पर आ जाएगा।
नन्हे मुन्ने सो जा वरना गब्बर सिंह आ जाएगा।
कुमार आशीष ने तरन्नुम में ग़ज़ल सुनाकर सम्मेलन में चार चाँद लगा दिए- आख़िरी दम तक लड़ा हूँ इंकलाबी जंग मैं,
गूँजता हूँ इसलिए ग़ज़लों में नारों की तरह।
कवि भारत शर्मा ने बेहद सुंदर प्रस्तुति दी-धूप गायब,हवा है तेज़,आकाश में गर्जन है आज।
तुम्हारे पास कुछ पल बैठने का मन है आज।।
बरेली से पधारे उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट ने मुखर अभिव्यक्ति की –
अब हम सब से प्यार करेंगे, रहे न कोई आज अछूता,
नफरत को हम दूर करेंगे, जितना होगा अपना बूता।
पवन शंखधार की रचना को भी तारीफें मिलीं-
मूर्ख से मत बहस कर अपना आपा खोय,
मूरख तो मूरख हुआ तू क्यों मूरख होय।
शैलेन्द्र मिश्र देव ने सुनाया-
आप अपनी बात कहना आप ही अब सीखिए ,
दूसरे तो बस कहें बदले हुए अंदाज में।
कवयित्री सरिता चौहान ने मधुर स्वर में प्रस्तुति दी-
दर्दों का अभिनन्दन कर लें
जीवन अपना कंचन कर लें
राजवीर सिंह तरंग ने सुनाया कि- धन दौलत से भरा हमेशा जिसका कासा लगता है,
इस दुनिया में शख्स वही तो सबसे प्यासा लगता है।
बिल्सी से पधारे कवि ओजस्वी जौहरी ने खूबसूरत रचना प्रस्तुत की-
तेरे अल्फाज़ हर वक़्त मिरे जहन में डोलते हैं,
देखके तुमको ही मेरी गज़ल के शेर बोलते हैं।
शायर विकास सक्सेना ‘साहिल’ बदायूँनी के अशआर भी खूब सराहे गए-
रोज़ कितनों को ही मिट्टी में मिला देते हैं
आसमाँ फिर भी चमकते हैं सितारे तेरे
बरेली से आनंद पाठक की गज़लों को बहुत प्यार मिला-
मौसम की बारिशों का मज़ा और बात है,
आँखों से जो हुई थी वो बरसात थी अलग।
उज्ज्वल वशिष्ठ की ग़ज़ल को भी खूब सराहा गया-
हार जाये ख़ुद को भी जो हमें जिताने में
बाप के अलावा क्या है कोई ज़माने में
अखिलेश ठाकुर ने ओजपूर्ण कविता प्रस्तुत की-
पहले पक्का वोट बनाया जाता है
फिर हमको रोबोट बनाया जाता है।
शाहजहाँपुर से राष्ट्रवादी कवि प्रदीप वैरागी सड़क दुर्घटना के कारण सम्मिलित नहीं हो सके उन्होंने अपना संदेश व रचना भेजी जिसे पढ़कर सुनाया गया- राष्ट्र का हमारे स्वाभिमान हैं बेटियाँ।
माँ-बाप का हँसता हुआ ज़हान हैं बेटियाँ।
पवन शंखधार के उत्कृष्ट संचालन ने कवि सम्मेलन में सभी को मंत्रमुग्ध कर जीवंत कर दिया।
अंत में मंच की संस्थापिका दीप्ति सक्सेना ने सभी के प्रति आभार प्रकट किया।
इसके अलावा मंजु सक्सेना, आलोक शाक्य, गौरव सक्सेना, असरार अहमद, अगम, रितिक आदि उपस्थित थे।