सम्भल। बालाजी महाराज कल्कि धाम मंदिर हल्लू सराय पर मद्द भागवत कथा के तृतीय दिवस पर व्यास धर्मवीर शास्त्री जी महाराज ने राजा परीक्षित को कथा सुनाते हुए कहा कि राजा परीक्षित को भागवत कथा सुनाते हुए शुकदेव को छह दिन बीत गए और उनकी मृत्यु में बस एक दिन शेष रह गया। लेकिन राजा का शोक और मृत्यु का भय कम नहीं हुआ। तब शुकदेवजी ने राजा को एक कथा सुनाई – ‘एक राजा जंगल में शिकार खेलने गया और रास्ता भटक गया। रात होने पर वह आसरा ढूंढ़ने लगा। उसे एक झोपड़ी दिखी जिसमें एक बीमार बहेलिया रहता था। उसने झोपड़ी में ही एक ओर मल-मूत्र त्यागने का स्थान बना रखा था और अपने खाने का सामान झोपड़ी की छत पर टांग रखा था। उसे देखकर राजा पहले तो ठिठका, पर कोई और आश्रय न देख उसने बहेलिए से झोपड़ी में रातभर ठहरा लेने की प्रार्थना की। बहेलिया बोला – ‘मैं राहगीरों को अकसर ठहराता रहा हूं। लेकिन दूसरे दिन जाते समय वे झोपड़ी छोड़ना ही नहीं चाहते। इसलिए आपको नहीं ठहरा सकता।’ राजा ने उसे वचन दिया कि वह ऐसा नहीं करेगा। सुबह उठते-उठते उस झोपड़ी की गंध में राजा ऐसा रच-बस गया कि वहीं रहने की बात सोचने लगा। इस पर उसकी बहेलिए से कलह भी हुई। वह झोपड़ी छोड़ने में भारी कष्ट और शोक का अनुभव करने लगा।’
कथा सुनाकर शुकदेव ने परीक्षित से पूछा- ‘क्या उस राजा के लिए यह झंझट उचित था?’ परीक्षित ने कहा- ‘वह तो बड़ा मूर्ख था, जो अपना राज-काज भूलकर दिए हुए वचन को तोड़ना चाहता था। वह राजा कौन था?’ तब शुकदेव ने कहा – ‘परीक्षित, वह तुम स्वयं हो। इस मल-मूत्र की कोठरी देह में तुम्हारी आत्मा की अवधि पूरी हो गई। अब इसे दूसरे लोक जाना है। पर तुम झंझट फैला रहे हो। क्या यह उचित है?’ यह सुनकर परीक्षित ने मृत्यु के भय को भुलाते हुए मानसिक रूप से निर्वाण की तैयारी कर ली और अंतिम दिन का कथा-श्रवण पूरे मन से किया। और और भैया जी महाराज ने भक्त प्रल्हाद की कथा का भी वर्णन किया जिसमें उन्होंने बताया कि भक्त प्रल्हाद कैसे जन्म हुआ आगे कथा सुनाते हुए उन्होंने कथा पर प्रकाश डालते हुए बताया भक्त प्रह्लाद का जन्म महर्षि कश्यप की पत्नी दक्षपुत्री दिति के गर्भ से दो महान पराक्रमी बालकों का जन्म हुआ। इनमें से बड़े का नाम हिरण्यकशिपु और छोटे का नाम हिरण्याक्ष था।
दोनों भाइयों में बड़ी प्रीति थी। दोनों ही महाबलशाली, अमित पराक्रमी और आत्मबल संपन्न थे। दोनों भाइयों ने युद्ध में देवताओं को पराजित करके स्वर्ग पर अधिकार कर लिया।
एक समय जब हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को रसातल में ले जाकर छिपा दिया तब भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर पृथ्वी की रक्षा के लिए हिरण्याक्ष का वध किया। कयाधु उस पवित्र आश्रम में नारदजी के सुन्दर प्रवचनों का लाभ लेती हुई सुखपूर्वक रहने लगी जिसका गर्भ में पल रहे शिशु पर भी गहरा प्रभाव पड़ा।
समय होने पर कयाधु ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम प्रह्लाद रखा गया। इधर हिरण्यकशिपु की तपस्या पूरी हुई और वह ब्रह्माजी से मनचाहा वरदान लेकर वापस अपनी राजधानी चला आया। कुछ समय के बाद कयाधु भी प्रह्लाद को लेकर नारदजी के आश्रम से राजमहल में आ गयी।
श्रीमद् भागवत कथा सुनाते श्री धर्मवीर शास्त्री जी महाराज।