बज़्मे इंतेखाब के तत्वाधान में आयोजित एक शाम शफी चिश्ती के नाम मुशायरे का आयोजन

सम्भल। नगर के बेगम सराय स्थित इंतेखाब सम्भली के आवास पर बुजुर्ग शायर शफी चिश्ती के सम्मान में आयोजित एक शाम शफी चिश्ती के नाम सम्मान समारोह आयोजित किया गया जिसमें शफी चिश्ती की अदबी खिदमात पर एमजीएम कॉलेज के पूर्व प्राचार्य आबिद हुसैन हैदर ,रिज़वान मसरूर ने रोशनी डाली बाद में मुख्य अतिथि के रूम में समाजसेवी मुशीर खां तरीन ने शफी चिश्ती को शाल व प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया।
इस अवसर पर मुशायरे का आयोजन किया गया जिसमें मुकामी व दूरदराज से आए शायरों ने अपने कलाम पेश किये। मुशायरे का आरंभ मुजम्मिल खां मुजम्मिल ने नाते पाक पढ़कर किया ।इसके बाद ग़ज़ल के दौर का आगाज़ करते हुए राज़ अंजुम ने कहा-तुम्हे राहज़न पे गुस्सा आ रहा है,हमे तो रहनुमा लुटवा रहे हैं
नोशाद सम्भली ने कहा-तवील हो गया हूँ।ख़ुद को मुख्तसर करूँगा,बना हूँ।जिसके लिए में उसको खबर करूँगा। बुरहान सम्भली ने कहा-यहां नफरत को फैलाना कोई आसान थोड़ी है,यह भारत है यह भारत है। यह पाकिस्तान थोड़ी है। कौसर सम्भली ने कहा-तमाम अहले जुबां थोड़ा इंतजार करें,सलीका सीख रही है।अभी जुबां मुझसे। रफ़त मुरादाबादी ने कहा-आज मां बाप की खिदमत का इताअत का सफर,कल हमारे लिए बन जाएगा जन्नत का सफर। शफीक बरकाती ने कहा-किसी के दिल में नहीं खौफ आज महशर का,जिसे भी देखिए दुनिया की जुस्तजू में है।
शाह आलम रौनक़ ने कुछ यूं कहा-अमीरों से मिलोगे गर तो ख़ुद को भूल जाओगे,ज़रा सा फासला होना निहायत ही ज़रूरी है। वसीम सम्भली ने कहा-हमने हंसते हुए सपनों से रिफाकत की है,तब कहीं जाकर तेरी बज़्म में शिरकत की है। हसन मलकपुरी ने कहा-जिन्हें रफीक हम अपना बनाए जाते हैं,वह हर कदम पर हमें आजमाए जाते हैं। इंतेखाब सम्भली ने कहा- यह तड़पती हुई लाशें यही खूनी मंजर,मुस्तकिल एक ही मंजर नहीं देखा जाता।कामिल सम्भली ने कहा-किसी की राह में खुद को मिटाने आए हैं,गमों को अपना मुकद्दर बनाने आए हैं। सुल्तान अज़हर मुरादाबादी ने कहा-इस कदर ज़हन पे हावी है मेरे तन्हाई,कोई आवाज़ भी देता है तो डर जाता हूँ। तौफीक आज़ाद एडवोकेट ने कहा- मैंने यादों के दरीचों में सजा रखा है,मेरे पहलू से मिलाकर तेरा पहलू रखना।
मुजाहिद नादां ने कहा-कटे सर भूल जाते हैं जले घर भूल जाते हैं,हमें जो याद रखने थे वह मंजर भूल जाते हैं। बुजुर्ग शायर मोहम्मद सुलतान खां कलीम ने कहा-राह में बोयेगा कांटे यह कहां समझा था मैं,जो मुनाफिक था उसी को राजदाँ समझा था मैं। देर तक चले मुशायरे में सैय्यद हुसैन अफसर,अज़रा सम्भली,अज़हर मुरादाबादी,वकील खां बेदिल आदि ने भी कलाम पेश किए। अध्यक्षता मोहम्मद सुल्तान खां कलीम व संचालन सुल्तान अज़हर मुरादाबादी ने किया।

सम्भल से खलील मलिक की रिपोर्ट