सहसवान।बताते चलें कि शब-ए-बारात पूरे भारत में इस बार 7 मार्च को मनाई गई।ऐसे ही इस दिन का बेसब्री से लोगों इंतजार नहीं होता है।मुस्लिम समुदाय में मान्यता है कि इस दिन की गई इबादत का सबाब बहुत ज्यादा होता है. इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक माह -ए-शाबान को बेहद पाक और मुबारक महीना माना जाता है।
कहा जाता है कि इस दिन की गई इबादत में इतनी ताकत होती है कि वो किसी भी तरह के गुनाहों से माफी दिलाती है। दरअसल बीते महीने मंगलवार (21 फरवरी) शाबान का चाँद का नजर आया था। इस दिन ही इस त्योहार को 7 मार्च को मनाए जाने का एलान किया गया था। इसे लेकर सभी शहरों में सुरक्षा व्यवस्था ही चाक चौबंद कर दी गई है क्योंकि इसी दिन होलिका दहन भी है।

12वें इमाम की पैदाइश का है दिन
सुन्नी मुसलमानों मानते ​​हैं कि इस पाक दिन अल्लाह ने नूह (ईसाई धर्म में नूह) के संदूक को बाढ़ से बचाया था।वहीं शिया मुसलमानों के 12वें इमाम मुहम्मद अल महदी की पैदाइश शाबान की 15 तारीख को मानते हैं। इस्लाम धर्म के अनुयायी के लिए ये त्योहार बहुत अहम होता है।
इसे शब ए बारात या शबे बारात के नाम से भी जाना जाता है।इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक हर साल शब-ए-बारात शाबान महीने की 15वीं तारीख की रात को मनाई जाती है। इस दिन शब ए बारात की खास नमाज भी पढ़ी जाती है।भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, ईरान, अफ़ग़ानिस्तान और नेपाल में इसे शब-ए-बारात कहा जाता है।
लफ्जों में शब और बारात से मिलकर शब-ए-बारात बना है।शब से मतलब रात से है और बारात का मतलब बरी यानी बरी वाली रात से है।सऊदी अरब में शब-ए-बारात को “लैलतुल बराह या लैलतुन निसफे मीन शाबान” कहते हैं।

गुनाहों से तौबा की रात

शब-ए बारात की रात ऐसी रात है।जो सभी गुनाहों से गुनाहगार को माफी दिलाती है।इस पाक रात के दिन जो भी सच्चे दिल से अल्लाह की इबादत करता है, उसके सामने अपने गुनाहों से तौबा करता है परवरदिगार उसे माफी अता करता है।यही वजह है कि मुस्लिम समुदाय के लोग इसके लिए खास तैयारियां करते हैं।इस दिन केवल खुदा की इबादत ही नहीं की जाती बल्कि वो अपने जो अल्लाह को प्यारे हो गए हैं।उनकी कब्र पर जाकर पूरी रात दुआ की जाती है।फूल और अगरबत्ती के जरिए उनको याद करते हैं।कब्रों पर चिराग जलते हैं और दुनिया को अलविदा कह गए अपनों के लिए मगफिरत की दुआएं पढ़ी जाती हैं। माना जाता है कि रहमत की इस रात में अल्लाह पाक कब्र के सभी मुर्दों को आजाद कर देता है। मुस्लिम समुदाय मानता है कि उनके वो अपने इस रात वापस अपने घर का रुख कर सकते हैं, इसलिए शब ए बारात की रात मीठा बनाने का रिवाज है।
मस्जिदों और कब्रिस्तानों में इस दिन मुस्लिम लोग अपने पूर्वजों को याद करने के लिए पहुंचते हैं।घरों में मीठे पकवान बनते हैं और इन्हें दुआ करने, इबादत के बाद गरीबों में बांटा जाता है। इस दिन मस्जिदों और कब्रिस्तानों में की गई खास सजावट देखते ही बनती है।ये रात इस्लाम में 4 मुकद्दस रातों में से एक मानी जाती है।पहली होती है आशूरा की रात, दूसरी शब-ए-मेराज, तीसरी शब-ए-बारात और चौथी शब-ए-कद्र की रात कही जाती है।
रिपोर्ट = सैयद तुफैल अहमद