बदायूं। जिला महिला अस्पताल की मुख्य चिकित्सा अधिक्षिका की अध्यक्षता में माहवारी स्वच्छता एवं हाइजीन के प्रति  महिलाओं और बालिकाओं को जागरूक किया गया।जिसमें संत गाडगे सर्वजन कल्याण समिति के प्रदेश सचिव इंद्रजीत ने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़ पूरी दुनिया में हर महीने करीब 1.8 अरब महिलाओं को माहवारी होती है, इनमें से ज़्यादातर विकासशील देशों की कम से कम 50 करोड़ महिलाओं को माहवारी के बारे में ना तो कोई अधिक जानकारी है और ना ही उन्हें इस स्थिति को सुरक्षित और सम्मानजनक तरीके से संभालने के बारे में ज़्यादा कुछ पता है।उदाहरण के लिए, नाइजीरिया में 25 प्रतिशत महिलाओं को (मेन्सट्रुअल हाइजीन मैनेजमेंट) यानी माहवारी स्वच्छता प्रबंधन के लिए ज़रूरी निजत या एकांत की कमी है। बांग्लादेश में केवल 6 प्रतिशत स्कूलों में ही माहवारी स्वच्छता प्रबंधन की शिक्षा दी जाती है. माहवारी की समझ और इसके लिए ज़रूरी साफ़-सफ़ाई को लेकर जागरूकता की कमी के साथ ही माहवारी के समय आवश्यक सैनिटरी नैपकिन जैसी चीज़ों तक पहुंच नहीं होना भी इसकी एक बड़ी वजह है।

भारत में माहवारी वाली 40 करोड़ महिलाओं में 20 प्रतिशत से भी कम महिलाएं सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल करती हैं, जबकि इन महिलाओं की बहुत बड़ी संख्या (65 प्रतिशत) लिपिस्टिक जैसे सौंदर्य उत्पादों का उपयोग कर रही है।जबकि 71 प्रतिशत किशोरी बालिकाओं को तब तक माहवारी के बारे में कुछ भी पता नहीं होता है, जब तक उनका पहला पीरियड नहीं आता. यह उनके स्वास्थ्य, आत्मविश्वास और आत्मसम्मान को प्रभावित करता है।माहवारी स्वास्थ्य और स्वच्छता तक महिलाओं और बालिकाओं की पहुंच जननेंद्रिय-संवेदनशील जल, स्वच्छता और स्वास्थ्य  सेवाओं का एक अंग है।सभी के लिए पर्याप्त और एक समान स्वच्छता एवं स्वास्थ्य उपलब्धता सुनिश्चित करना और खुले में शौच को समाप्त करना है, साथ ही महिलाओं व बालिकाओं और कमज़ोर लोगों की ज़रूरतों पर विशेष ध्यान देना है.” यह उल्लेखनीय है कि सुरक्षित और सम्मानजनक माहवारी की आवश्यकता को समझे बगैर दुनिया सतत विकास लक्ष्य 6 के अंतर्गत स्वच्छता और स्वास्थ्य के लक्ष्य को हासिल नहीं कर सकती है।जिला अध्यक्ष खुशबू मथुरिया ने बताया कि शिक्षा और रोज़गार से लेकर स्वास्थ्य और पर्यावरण तक हर विषय में लैंगिक समानता के मद्देनज़र यह संकट बेहद डरावना है माहवारी को लेकर किशोरियों और महिलाओं को अपमान, उत्पीड़न एवं सामाजिक बहिष्कार तक का सामना करना पड़ता है।इन सबकी वजह से महिलाएं कहीं आ-जा नहीं सकती हैं, उनकी पसंद-नापसंद प्रभावित होती है, यहां तक कि समुदाय के बीच उठना-बैठना दूभर हो जाता है और लड़कियों की स्कूलों में उपस्थिति भी कम हो जाती है। अक्सर यह देखने में आता है कि भेदभाव वाली सामाजिक प्रथाएं, सांस्कृतिक रूढ़ियां, ग़रीबी और शौचालय एवं सैनिटरी उत्पादों जैसी जरूरी सुविधाओं की कमी सभी महिलाओं तक माहवारी स्वास्थ्य और स्वच्छता की पहुंच में सबसे बड़ा रोड़ा बनती हैं।लीगल एडवाइजर दीपांशी सक्सेना ने बताया कि यह योजना सैनिटरी पैड के मुफ़्त वितरण के बजाय जागरूकता और इसकी स्वीकृति पर अधिक ज़ोर देने की कोशिश करें स्थानीय लोग चूंकि सबसे अच्छे सलाहकार होते हैं, इसलिए इसमें पूरे समाज के दृष्टिकोण को शामिल किया गया है. स्वच्छता सखियां स्थानीय लोक गीतों, नारों, रेडियो संदेशों और नुक्कड़ नाटकों के माध्यम से माहवारी स्वच्छता को बढ़ावा देती हैं. “पावना, बदल रही है मन की भावना” और “पावना नारी शक्ति का आईना” जैसे नारे वहां के गांवों और स्कूलों में लोकप्रिय हो गए हैं। शिक्षा और पंचायती राज विभाग ने भी रक्त दान शिविरों, निबंध लेखन एवं ड्राइंग प्रतियोगिताओं के माध्यम से और अंतर्राष्ट्रीय माहवारी स्वच्छता दिवस मनाकर इस कार्यक्रम को सफल बनाने में अपना सक्रिय योगदान दिया है। इतना ही नहीं असुरक्षित माहवारी के कारण तमाम तरह की बीमारियों का शिकार हुई महिलाओं को भी अक्सर अपने अनुभव साझा करने के लिए इन अभियानों में लाया जाता है।इस योजना ने केवल सैनिटरी पैड बेचने के अलावा और भी बहुत कुछ हासिल किया है. माहवारी से जुड़ी तमाम रूढ़ियों से लड़ने के लिए इस विषय से जुड़े तमाम मिथकों और भ्रांतियों को तोड़कर एक सामाजिक क्रांति की शुरुआत की है।इस कार्यक्रम में शामिल क्वालिटी मैनेजर अरविंद कुमार वर्मा ,राकेश सैनी स्टाफ नर्स मेल, सर्वेन्द्र यादव,समस्त महिला स्टाफ नर्स,व तीमारदार मौजूद रहे।