बदायूं। मुख्य चिकित्साधिकारी के ऑफिस में बैठे बाबू से मिल कर दलालों द्वारा फर्जी विकलांग प्रमाण पत्र बनाने का धंधा बहुत लंबे से समय खूब फल-फूल रहा हैं। पहले तो किसी अधिकारी को भनक भी नहीं लगी। वर्तमान सीएमओ को जानकारी होते ही जांच के आदेश दिए हैं हो सकती है कई कर्मचारियों पर बड़ी कार्रवाई।
सवाल यह है कि अधिकारी के द्वारा आपके दिए गए आवेदन फॉर्म की जांच की जाती है और उसके बाद आप का मेडिकल जांच भी किया जाता हैं जिससे यह प्रमाणित हो सके कि आप सच में विकलांग है या नहीं हैं।चार अधिकारियों के पैनल के द्वारा आप को मेडिकल जांच के लिए एक निश्चित समय दिया जाता हैं और उस समय में आपको अपना मेडिकल जांच करवा कर रिपोर्ट अधिकारी के पास जमा करनी होती हैं।फिर कैसे बन रहे हैं फर्जी विकलांग प्रमाण पत्र इसमें दो बातें हो सकती हैं या तो मोटी रकम लेकर बनाया जा रहा हैं या फिर विकलांग प्रमाण पत्र बनाने वाले अधिकारी आंख मूंद कर बैठे हैं और अपनी जिम्मेदारी नही निभा रहे हैं।
सीएमओ ऑफिस से लेकर जिला अस्पताल के कमरा नं 40 तक चलता है नेटवर्क विकलांग प्रमाण पत्र बनाने के नाम पर एक बहुत बड़ा खेल चल रहा है जिसकी जानकारी अधिकारियों को भी हो चुकी हैं।जहां पूरी तरीके से सीएमओ ऑफिस में दलाल हावी हैं।आर्थिक साठगांठ से फर्जीवाड़े का काम हो रहा है।
बगैर दलाल के विकलांग प्रमाण पत्र बनवाना आसान नहीं कार्यालय में बैठे बाबू के पास कई दिनों तक चक्कर लगाने पड़ेंगे। अगर आप दलाल से नही मिलोगे तो कोई काम नहीं होगा दलाल के द्वारा सब एक ही दिन में ओके हो जाता हैं।
सूत्रों के अनुसार हुई जानकारी में खास बात तो यह है अगर आप विकलांग नहीं है फिर भी आपका विकलांग प्रमाण पत्र दलाल के माध्यम से बन जायेगा। अगर विकलांग प्रमाण पत्रों की सत्यता से जांच की जाए तो 50 प्रतिशत फर्जी विकलांग प्रमाण पत्र निकलेंगे ऐसे विकलांग प्रमाण पत्र स्वास्थ्य विभाग के ही संविदा कर्मियों के बने हुए हैं।जो कस्बों और गांवों से बसों सफर करते हैं। यह विकलांग प्रमाण पत्र के माध्यम से रोडवेज में सफर करने के उद्देश्य से बनवा रखा हैं।विकलांग प्रमाण पत्र के सहारे बसों और रेल में सफर करके फुल आनंद ले रहे इधर उप्र परिवहन विभाग,रेलवे विभाग को विकलांग प्रमाण पत्र के माध्यम से लाखों रुपए का राजस्व का चूना लग रहा हैं।
सबसे बड़ी दिलचस्प बात तो यह है। क्या जो व्यक्ति कानों से बहरा है वह व्यक्ति बगैर मशीन के मोबाइल की काल अच्छी तरह से सुन रहा है और वीडियो,गानें सुनकर पूरा आनन्द ले रहा हैं।
विभाग के अधिकारी क्या ऐसे व्यक्तियों के विकलांग प्रमाण पत्र होना सही मान रहे हैं।
ऐसा ही एक मामला शहर के फर्जी विकलांग पत्र का सामने आया है जो व्यक्ति हाथों पैरों से स्वस्थ है और वह बाइक चला रहा है जबकि उस व्यक्ति के हाथों का 65 प्रतिशत का विकलांग प्रमाण पत्र मोटी रकम लेकर बना दिया हैं। जबकि उस व्यक्ति के हाथ,पैर बिल्कुल सही हैं उसका भी विकलांग प्रमाण पत्र बना दिया हैं।
पूर्व में बनाए गए विकलांग प्रमाण पत्र की सही से जांच कमेटी गठित करके एसडीएम स्तर के अधिकारी की मौजूदगी में धरातलीय जांच कराई जाए तो 50 प्रतिशत फर्जी विकलांग प्रमाण पत्र निकलेंगे और जिनकों तत्काल प्रभाव से निरस्त किया जाए।ऐसे फर्जी विकलांग प्रमाण पत्र जब निरस्त हो जाएंगे तो उस सरकार का राजस्व भी बढ़ेगा।और भ्रष्टाचार भी खत्म हो जाएगा।
स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी बताते है कि रोडवेज और रेलवे के लचर व्यवस्था का फायदा उठाकर शातिर फर्जी विकलांग प्रमाण पत्र के सहारे ट्रेन व बसों में सफर करने में कामयाब हो रहे है। नि: शुल्क यात्रा का लाभ पाने के लिए सिर्फ दिव्यांग प्रमाण पत्र और आधार कार्ड दिखाना होता हैं। बस कंडक्टर प्रमाण पत्रों की मौके पर जांच नहीं कर सकता है। लिहाजा मामला जल्द पकड़ में नहीं आता हैं। ऐसे में फर्जी प्रमाण पत्रों के जरिए किए गए सफर का भुगतान विकलांग कल्याण विभाग करता है। इन दिनों डीआरएम कार्यालय में किराये में छूट पाने के लिए आवेदन किए है। इन आवेदकों की जांच सीएमओ कार्यालय से करायी जाए तो फर्जी प्रमाण पत्र जारी होने का खुलासा हो जाएगा। मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ प्रदीप वार्ष्णेय ने बताया है कि फर्जी विकलांग प्रमाण पत्र का मामला मेरे संज्ञान में आया है उस पर जांच चल रही है और जांच पूरी होने के बाद स्थिति स्पष्ट हों जाएंगी।
रिपोर्टर – भगवान दास