महराजगंज: जम्मू कश्मीर के अखनूर मे देश की हिफाजत करते हुए जनपद का लाल शहीद हो गया।सदर क्षेत्र के सिसवनिया निवासी चंद्र बदन की शहादत पर गांव ही नही बल्की तराई का जर्रा जर्रा रो उठा।वर्ष2018मे सेना मे शामिल हुए 24वर्षीय चंद्र बदन की नौकरी मे आने के दो साल बाद ही शहादत पर गांव क्षेत्र के लोगों की आंखो में आंसू छलक उठे हैं।पांच फरवरी को भोर मे पाक के कायराना हरकत मे चंद्र बदन शहीद तो हो गये लेकिन आतंकियो के मंसूबो को सफल नहीं होने दिया।10फरवरी को घर आने की सूचना देने के बाद परिवार चंद्र बदन के आने का इंतजार कर रहा था लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था।
शहीद चंद्रबंदन परिवार में सबसे बड़े थे। उनका छोटा भाई विमल शर्मा प्रयागराज में रहकर प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करता है। वहीं बहन काजल भी गोरखपुर में रहकर प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रही है। चंद्रबदन अपने भाई-बहन की पढ़ाई को लेकर बेहद गंभीर रहते थे। समय-समय पर उन्हें फोन पर ही मार्ग दर्शन देते थे। भाई के शहादत की खबर सुनकर छोटे भाई एवं बहन की अश्रूधारा फूट पड़ी।शहीद चंद्रबदन की मां का निधन वर्ष 2000 में हुआ था। मां के देहांत के बाद चंद्रबदन अपने भाई बहन की परवरिश को लेकर बहुत गंभीर रहते थे। यही कारण था कि दोनों को कामयाब बनाने के लिए बड़े शहर में परीक्षा की तैयारी करने के लिए भेजा था।
34माह की सेवाकाल मे हुए शहीद
चंद्र बदन देश सेवा करते हुए 34 माह की सेवाकाल मे ही शहीद हो गये।चंद्र बदन की सेना में सिग्नल कोर में तैनाती मार्च 2018 में हुई थी। मार्च माह में नौकरी करते हुए उन्हें तीन साल पूरा होता। लेकिन इसके पहले ही वह शहीद होकर इतिहास के पन्नों में अमर हो गए। नौकरी में जाने के बाद वह पारिवार की हर छोटी बड़ी जिम्मेदारी को बखूबी निभाते रहे
आई शहीद होने की खबर तो रो पड़े गांव के डगर
शहीद चंद्रबदन ने घर आने के लिए छुट्टी ले रखी थी। 10 फरवरी को उनकी छुट्टी एक माह के लिए स्वीकृत थी। उन्होंने फोन से अपने भाई एवं बहन को इसकी जानकारी दी थी। लेकिन किसी को यह पता नहीं था कि तिरंगे में लिपटकर आएंगे। उनके घर आने से पहले ही शहीद होने का संदेश आ गया और सभी फफक पड़ें।खबर सुनते ही दादी ,बुआ बेहोश हो गयीं।शहीद चंद्रबदन शर्मा की दादी रामरति देवी का रो-रोकर बुरा हाल है। वह कह रही थीं कि बाबू 10 फरवरी को आने वाले थे। उनके शहादत की सूचना मिली। यह कहकर रोते हुए बेहोश हो गई। यही हाल शहीद की बुआ श्रीपति देवी का रहा। गांव के लोगों ने बताया कि शहीद की दादी आंख का इलाज कराने के बाद घर लौटी थीं तो उन्हें यह जानकारी हुई।गांव की पगडंडियो पर बचपन की दौड़ भरने वाले चंद्र बदन के शहीद होने की खबर से गली मुहल्ले व हर डगर रो उठा।