महराजगंज: न दौलत के लिए, न जमीन के लिए ये जंग थी। ये जंग सिर्फ हक व बातिल और इमान के लिए थी। एक तरफ लाखों की फौज तो दूसरी तरफ महज 72 लोग थे। औरतों और दूध पीनेवाले बच्चों सहित अन्य लोगों पर ढाए गए जुल्म व सितम की कभी न भूली जाने वाली दर्द भरी दास्तां है मोहर्रम। मैदान ए कर्बला में हजरत इमाम हुसैन की शहादत ने दुनिया में इस्लाम का बोलबाला कर दिया। दुनिया के कोने-कोने में इस्लाम के मानने वाले इमाम हुसैन की शहादत की याद में मोहर्रम का त्योहार मनाते हैं। इस साल 20 अगस्त को मुहर्रम है। महराजगंज के मुस्लिम बहुत इलाकों में जोरशोर से इसकी तैयारी चल रही है।
कर्बला मैदान में जंग के बाद तेजी से फैला इस्लाम
इमाम हुसैन की शहादत इमान व इस्लाम को जिंदा रखने और रसुल (स) की आंखों की ठंडक नमाज को कायम रखने की सीख देता है। इस्लाम फैल रहा था और यजिदी हुकूमत को ये बात नागवार लगी। यजीदियों ने साजिश की और हजरत इमाम हुसैन को धोखे से पत्र भेजकर कर्बला में बुलाया। इमाम हुसैन को कहा गया कि यजीद उनके हाथों बैत होना चाहते हैं। यजिदियों का मकसद असल में कुछ और था। जब इमाम हुसैन अपने 72 लोगों के साथ करबला के पास पहुंचे तो उन्हें रोक दिया गया। कहा गया कि इमाम हुसैन और उनके काफिले में शामिल लोग यजीद के हाथ बैत हो जाएं नहीं तो यजिदी फौजों के साथ जंग करनी होगी। यजिदी फौज अपनी बात को मनवाने के लिए इमाम हुसैन और उनके काफिले में शामिल लोगों पर जुल्म व सितम ढाना शुरू कर दिया। पानी पर पहरा लगा दिया गया। दूध पीते नन्हे असगर को भी यजिदी फौजों ने तीरों से छलनी कर दिया। एक-एक कर मासूमों को भी मौत के घाट उतार दिया गया। भूख प्यास की शिद्दत के बाद भी हुसैन के खेमे के लोगों को शहीद कर दिया गया। सजदा करते हुए इमाम हुसैन ने भी शहादत की जाम पी ली। कर्बला मैदान में हुई इस जंग के बाद दुनिया में इस्लाम तेजी से फैला।
इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना है मोहर्रम
इस्लामी साल का पहला महीना मोहर्रम से शुरू होता है। इसी महीने में नबी करीम (स) अरब का शहर मक्का छोड़कर मदीना चले गए। यानी हिजरत कर गए। तब से हिजरी कैलेंडर की शुरुआत हुई। मुहर्रम का महीना सब्र की सीख देता है। मुसीबतों से लडऩे का हौसला देता है। हक और बातिल की जंग में सच्ची राह दिखलाता है। इस माह में लोग रोजे रखते हैं नमाज पढ़ते हैं और कुरान की तिलावत करते हैं।
मोहर्रम की दसवीं तारीख कई वजहों से खास
हजरत आदम अलैहिस्सलाम इसी दिन पैदा किए गए और इसी दिन उनकी तौबा कबूल हुई। हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम पैदा हुए। मुसा अलैहिस्सलाम की उम्मत को फिरऔन से निजात मिली। ईसा अलैहिस्सलाम इसी दिन पैदा हुए। हजरत नुह अलैहिस्सलाम की किस्ती जुदी पहाड़ पर ठहरी। हजरत नुह अलैहिस्सलाम को मछली के पेट से निकाला गया। इसके अलावा और भी कई ऐसे वाकये हैैं जो इस माह को खास बनाते हैैं।
नौतनवां तहसील प्रभारी दीपक बनिया