रिपोटर – सौरभ गुप्ता
रिमझिम रिमझिम गिरे सावन, बूँदों की बजी झंकार |
फेसबुक पर संचालित नीलम सक्सेना चंद्रा के पेज पर कल ऑनलाइन काव्य गोष्ठी का आयोजन हुआ। कार्यक्रम का तकनीकी कार्य पारुल रस्तोगी और मंच संचालन दीप्ति सक्सेना बदायूँ ने किया । काव्यगोष्ठी सावन और
सामाजिक कुरीतियों पर आधारित थी। सब से पहले अजय वर्मा, लखनऊ ने बेटी के सावन में मायके न आने पर एक पिता के उद्गार व्यक्त करते हुए पढ़ा “सावन के सूने झूलों ने दिल से तुझे पुकारा है” तत्पश्चात प्रियांशु सक्सेना गाजियाबाद ने सावन की मोहकता का वर्णन करते हुए कहा,”सावन मनभावन प्रेम से सराबोर” आगे राजस्थान से कवि राजेंद्र जाट ने सावन में बचपन को याद करते हुए पढ़ा ,”सावन से मिलन की घड़ी है आई”, इसके बाद गोष्ठी में सीतापुर से कवयित्री एवं गायिका पारुल रस्तोगी ने अपने काव्य की बरसात करते हुए पढ़ा “बरसन लागी बदरिया” सुना कर सब को आनंद विभोर कर दिया।आगे उत्तर प्रदेश बदायूँ से दीप्ति सक्सेना ने वियोग श्रंगार में एक प्रेयसी की विरह का वर्णन करते हुए पढ़ा ,”रिमझिम रिमझिम गिरे सावन बूंदों की बजी झंकार” इस गीत ने श्रोताओं का मन मोह लिया।
दूसरे राउंड में सामाजिक कुरीतियों पर चर्चा करते हुए अजय वर्मा एवं प्रियांशु सक्सेना ने दहेज प्रथा को सभ्य समाज के लिए कलंक बताया। राजेंद्र जाट ने मृत्यु भोज की प्रासंगिकता पर सवाल उठाए। पारुल रस्तोगी ने व्यक्ति की मृत्यु के बाद होने वाले कुछ कार्यों पर प्रश्न चिह्न लगाए। अंत में दीप्ति सक्सेना ने समाज में विधवाओं के साथ होने वाले तिरस्कारपूर्ण व्यवहार पर कटाक्ष किए। अपनी कविताओं के माध्यम से सभी कवियों ने समाज को एक सशक्त संदेश दिया। दर्शकों और श्रोताओं ने भारी उपस्थिति के साथ काव्य गोष्ठी का भरपूर आनंद लिया । रात्रि दस बजे कार्यक्रम सफलतापूर्वक संपन्न हुआ।