वैज्ञानिक शोध निष्कर्षों में पाया गया है कि मोबाइल फोन और सेल टावर का आजकल अत्यधिक उपयोग हो रहा है। बेहतर रिसेप्शन के लिये सेल टावर की गिनती भी दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। यह सेल टावर और मोबाइल फोन हमारे स्वास्थ्य के लिये एक बड़ा खतरा हैं। सेल टावर और मोबाइल फोन से इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन उत्सर्जित होती है। यह रेडिएशन हमारे शरीर के लिये सीधे रूप से हानिकारक नहीं होती पर इनसे उत्पन्न गर्मी में इतनी क्षमता होती है कि हमारे चेहरे तथा दिमाग के एक हिस्से को धीरे-धीरे प्रभावित करती है और इसका अत्यधिक उपयोग हानिकारक सिद्ध हो सकता है।

कानों में टिंग-टिंग की ध्वनियों का बजना उन पहले संकेतों में से एक हो सकता है कि सेलफोन हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करना शुरू कर रहा है। हमारे कान के भीतर चैनल्स में बन्द तरल पदार्थ हमारे शरीर का सन्तुलन बनाए रखने में कार्यरत होता है। एक अप्रत्याशित कान का दर्द या सन्तुलन को बनाए रखने में कठिनाई आदि अन्य संकेत हैं कि हम विद्युत चुम्बकीय संवेदनशीलता का सामना कर रहे हैं।

हमारा मस्तिष्क सेलफोन की विद्युत चुम्बकीय तरंगों के ‘रिसीविंग एंड’ के सीधे सम्पर्क में होता है, यह किरणें हमारी मानसिक रूप से तेज और जागरूक रहने की क्षमता को प्रभावित कर सकती हैं। पश्चिमी इंग्लैंड में ब्रिस्टल रॉयल इन्फर्मरी में स्वास्थ्य विभाग द्वारा प्रायोजित अनुसन्धान के अनुसार, एकाग्रता की कमी के कारण याद्दाश्त भी कमजोर हो सकती है और ध्यान केन्द्रित करने में असमर्थता के कारण नए कार्यों को सीखना भी कठिन हो सकता है।

न्यूरोलॉजिकल समस्याएँ भी अन्य बीमारियों के रूप में सामने आती हैं जिससे उनके मूल कारण का पता लगाना मुश्किल हो सकता है। परन्तु अचानक बिना कारण चक्कर आना, जी मिचलाना, बिन मौसम बीमार होना आदि यह विद्युत चुम्बकीय तरंगों से तंत्रिका तंत्र के कमजोर होने के लक्षण हो सकते हैं।

एक ब्रिटिश चिकित्सा पत्रिका द लांसेट के मुताबिक सेलफोन विकिरण सीधे सेल फंक्शन को बदल सकते हैं और रक्तचाप में वृद्धि का कारण बन सकते हैं। कुछ मामलों में रक्तचाप की बढ़ोत्तरी व्यक्ति में स्ट्रोक या दिल के दौरे को ट्रिगर करने के लिये पर्याप्त हो सकती है। धड़कन की दर में अचानक बदलाव, अकस्मात छाती के दर्द का अनुभव, साँस की कमी और अस्थिर रक्तचाप, शरीर पर सेलफोन उपयोग की प्रतिकूल प्रतिक्रिया का संकेत हो सकते हैं।

हालांकि आँख की समस्या रोजमर्रा के काम से उत्पन्न हो सकती है, परन्तु अकस्मात उत्पन्न परेशानियाँ, आँखों में किरकिरापन और दर्द, आँखों का फड़कना विद्युत चुम्बकीय विकिरण का नतीजा हो सकते हैं।

हमारे दृष्टिकोण में परिवर्तन, जैसे- अवसाद, चिन्ता, क्रोध, अचानक रोना और नियंत्रण खोना आदि मस्तिष्क में विद्युत चुम्बकीय विकिरण के कारण हो सकते हैं।

विद्युत चुम्बकीय संवेदनशीलता के कारण मांसपेशियों में कमजोरी और ऐंठन, साथ ही जोड़ों में दर्द, पैरों में ऐंठन और हाथों में कम्पन भी उत्पन्न हो सकती है।

स्वीडन के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑन वर्किंग लाइफ (National Institute for Working Life Sweden) के अध्ययन में एक सम्भावना दर्शाई है कि मोबाइल फोन के मात्र दो मिनट के प्रयोग के बाद से ही त्वचा पर थकान, सिरदर्द और जलती हुई उत्तेजना शुरू हो सकती है। यूके के राष्ट्रीय रेडियोलॉजिकल प्रोटेक्शन बोर्ड के अनुसार, मोबाइल फोन उपयोगकर्ता माइक्रोवेव ऊर्जा की एक महत्त्वपूर्ण दर को अवशोषित करते हैं जिससे उनकी आँखों, मस्तिष्क, नाक, जीभ और आस-पास की मांसपेशियों को हानि पहुँचने की सम्भावना बढ़ जाती है।

मूत्र पथ में गड़बड़ी, अधिक मूत्र, पसीना आदि विद्युत चुम्बकीय विकिरण की संवेदनशीलता का परिणाम हो सकती है।

विद्युत चुम्बकीय संवेदनशीलता हमारे खाने की पसन्द में बदलाव, भूख में बदलाव आदि का कारण बन सकती है। कुछ खाद्य पदार्थ जो पहले स्वादिष्ट लगते थे सेल फोन रेडिएशन के कारण अब पेट को परेशान कर सकते हैं या एलर्जी प्रतिक्रियाओं का कारण हो सकते हैं। सेल फोन के उपयोग से पेट फूलना और मोटापे की बीमारी भी होने की सम्भावनाएँ हैं।

कैंसर पर किये गए एक शोध के अनुसार, मोबाइल विकिरण से ‘सम्भावित कार्सीनोजेनिक विकिरण’ अर्थात कैंसर के जोखिम की सम्भावना है। मोबाइल फोन के उपयोग से सेहत पर पड़ने वाले प्रभाव को जानने के लिये इण्डियन काउन्सिल ऑफ मेडिकल रिसर्च और काउन्सिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च द्वारा जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में चूहों पर परीक्षण किया गया। इसमें पाया गया कि लम्बे समय तक रेडियोफ्रिक्वेन्सी रेडिएशन के प्रभाव में रहने के कारण द्विगुणित डीएनए स्पर्श कोशिकाओं में टूट जाते हैं, जिससे व्यक्ति की वीर्य गुणवत्ता और प्रजनन क्षमता पर बुरा प्रभाव पड़ता है। माइक्रोवेव रेडिएशन के कारण मानव कोशिकाओं के एंटीऑक्सीडेंट डिफेंस मैकेनिज्म क्षमता पर असर देखा गया है। कोशिकाओं की प्रतिरोधक क्षमता कम होने के कारण शरीर में हृदय रोग, कैंसर, आर्थराइटिस व अल्जाइमर जैसे रोगों के पनपने की सम्भावना रहती है।

प्रायः लोग रात को मोबाइल फोन को तकिये के नीचे वाइब्रेशन मोड पर रखकर सो जाते हैं परन्तु यह हमारे स्वास्थ्य के लिये एक बड़ा खतरा हो सकता है। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के एक शोध के अनुसार, चूँकि मस्तिष्क के भीतर भी सूचनाओं का आदान-प्रदान इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों के माध्यम से होता है, अतः मोबाइल को तकिए के पास रखने से मोबाइल के सिग्नल के लिये आती इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगे दिमाग की कोशिकाओं की वृद्धि को प्रभावित करती हैं। मस्तिष्क की प्राकृतिक तरंगों में बाधा के कारण इनका स्वाभाविक विकास बाधित होता है जिससे ट्यूमर विकसित होने की सम्भावना अधिक बढ़ जाती है।

मोबाइल फोन जहाँ हमें अपनों के सम्पर्क में लाते हैं, वहीं साथ लाते हैं संक्रामक रोग। सर्वेक्षण अध्ययन बताते हैं कि आम बीमारियों जैसे- सर्दी, जुकाम, खाँसी आदि के रोगाणु काफी अधिक संख्या में सेलफोन पर मौजूद रहते हैं और ये संक्रामक रोग सम्पर्क में आने पर आसानी से फैलते हैं। इसका सबसे अधिक असर डॉक्टरों द्वारा उपयुक्त मोबाइल में देखा जाता है। यदि डॉक्टर्स अपना फोन चिकित्सा केन्द्र में लेकर जाते हैं तो यह मोबाइल वहाँ उत्पन्न बीमारियों के विषाणु को एक संक्रामक जरिया प्रदान करते हैं। इसलिये अधिकांश चिकित्सालयों में मोबाइल फोन का उपयोग निषेध होता है।

मोबाइल फोन और सोशल मीडिया ने हमारी गोपनीयता पर भी भारी प्रहार किया है। आज किसी के बारे में भी निजी से निजी बात जानना इतना कठिन नहीं रहा है। लोग सोशल मीडिया अकाउंट में बहुत से नियम लगाते हैं, फिर भी कई बार उनके निजी जीवन की बातें अनजान लोगों तक पहुँच जाती हैं। कई लोग इसका लाभ उठाकर दूसरों की गोपनीय बातों का अनैतिक ढंग से प्रयोग करते हैं। इस स्थिति ने भी एक डर और तनाव का माहौल उत्पन्न कर दिया है। लोग हमेशा तनाव में रहते हैं कि उनकी गतिविधियों पर किसी की नजर है। इससे स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

कई लोग यात्रा करते हुए या रास्ते में चलते हुए भी फोन पर बात करते रहते हैं। कई लोग तो वहाँ चलते हुए मैसेज और सोशल मीडिया भी चलाते हैं। इससे ध्यान मुख्य कार्य अर्थात ड्राइविंग से विचलित होता रहता है। ध्यान केन्द्रित न होने के कारण अक्सर दुर्घटना का सामना करना पड़ता है। एक अध्ययन के अनुसार, सड़क दुर्घटना के 10 में से 6 का कारण मोबाइल फोन है।

प्रतिदिन नए-नए मोबाइल खेल का विकास हो रहा है। यह खेल इतने रोचक और मंत्रमुग्ध करने वाले होते हैं कि बच्चों को इनकी लत लग जाती है। वे सोते-जागते यही खेल खेलते रहते हैं। इससे उनकी दिनचर्या भी बिगड़ जाती है जो स्वास्थ्य के लिये हानिकारक सिद्ध होती है। इतना ही नहीं कई खेल जैसे- पोकेमॉन गो, ब्लू व्हेल आदि के कारण बच्चे और बड़े, सड़क दुर्घटना और आत्महत्या आदि का शिकार हो रहे हैं।

मोबाइल फोन की लत की यह बीमारी इतनी आम और इतनी सहज हो गई है कि हमें यह ज्ञात भी नहीं होता कि हम इससे ग्रसित हैं। इस बीमारी के लक्षण इतने सामान्य हैं कि इनका पता चलना मुश्किल है।

कई लोग मानसिक रोग या डिप्रेशन से पीड़ित होते हैं। इस कारण उन्हें असल दुनिया से अधिक आराम मोबाइल की दुनिया में मिलता है। चिकित्सक से इस विषय में विस्तृत बातकर इस लत के पीछे छिपे मूल कारण को ढूँढा जा सकता है।

हालांकि स्मार्टफोन की लत का इलाज करने के लिये कोई भी वर्तमान अनुमोदित दवाएँ नहीं हैं, परन्तु जब मनोचिकित्सा के साथ जोड़ा जाता है तो एंटीडिप्रेशन जैसी दवाएँ, इस लत का इलाज करने में मदद कर सकती हैं। परन्तु इसके लिये विशेषज्ञों की सलाह और अनुमति की आवश्यकता अनिवार्य है।