आखिर दो हजार में बरेली जाने वाली एम्बुलेंस पच्चीस हजार रुपये किसके दम पर वसूल रही है कौन है इसका सरगना और इस लूट में कितने हैं हिस्सेदार ।

बदायूँ। हम आपको बता रहे हैं बदायूं के सरकारी अस्पताल के सामने कैसे प्राइवेट एम्बुलेंस वाले तीमारदारों को कैसे लूट रहे हैं और किसके आशीर्वाद से लूट रहे हैं। यह एक बड़ा सवाल है आज हमारी टीम के कुछ पत्रकार ग्राउंड जीरो पर पहुंचे और बदायूं से बरेली जाने के लिए एक प्राइवेट एंबुलेंस वाले से बात की तब उसने 5000 रूपये मांगे थे तब हमारी टीम के सदस्य ने उससे सवाल पूछे तब उसने 10000 रूपये कर दिए और उसके बाद कई एंबुलेंस वालों से बात की तो सभी ने 10,000 रूपये ही मांगे और कहा कि यह हमारी यूनियन है सबको हिस्सा देना होता है और जब एक एम्बूलेंस वाले ने जितने रूपये मांग लिए तो हम सब उतने ही रूपये लेते हैं। एक मरीज के परिजन ने मेडिकल कॉलेज से बरेली के लिए डॉक्टर की टीम के साथ एम्बुलेंस की बात की तो उसने समझ लिया कि इनको इमरजेंसी है तो उस एम्बुलेंस वाले ने 25 हजार रुपये मांगे एक रुपया कम नहीं किया और साथ ही सबसे बड़ा धोखा भी कर दिया, डॉक्टर के नाम पर एक चपरासी साथ में लगा लिया और उसी को डॉक्टर बता दिया। जब बदायूँ से निकले तो उनकी तबीयत खराब हो गयी और एम्बूलेंस में मौजूद उस तथाकथित डाक्टर से मरीज की हालत कंट्रोल नहीं हुई जिससे उस मरीज ने एम्बुलेंस में ही दम तोड़ दिया, इस मौत का जिम्मेदार आखिर कौन होगा। झूठ बोलकर चिकित्सा के नाम पर लोगों के ठगना और डाक्टर के स्थान पर चपरासी को भेज देना एक प्रकार लोगों की जान के साथ खिलवाड़ करना ही है।
अब सवाल उठता है कि आखिर एम्बूलेंस वालों ने इस महामारी के दौर मे ऐसी लूट क्यों मचा रखी है और आखिर इसका जिम्मेदार कौन होगा, जो एम्बुलेंस बदायूँ से बरेली दो हजार में जाती थी उसके आज 25 हजार रुपये आखिर किसके दम पर वसूल किये जा रहे हैं। सरकारी अस्पताल के सामने सभी एम्बुलेंस लाइन लगाकर एक ही स्थान पर खड़ी होती हैं ताकि तीमारदारों से तय हो रही वार्ता को सभी जान सकें और सब एकराय रहें, साथ ही प्राइवेट एम्बूलेंस वालों ने अपनी एक तथाकथित यूनियन बना रखी है और जब कोई अपनी जान पहचान निकालता है तो कह देते हैं कि हमारी यूनियन ने जो रेट तय कर दिए हैं उससे कम कोई भी नहीं लेगा। सबसे ज्यादा दुख की बात है किसी गरीब व्यक्ति के लिए प्राइवेट एंबुलेंस तक हायर करना संभव नहीं हो रहा है, जिससे उसके मरीज की जान भी चली जाती है। इसकी शिकायत जब स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों से की जाती है तो अधिकारी कह देते हैं कि ये लोग प्राइवेट हैं इन पर हमारा कोई जोर नहीं है, जबकि ऐसा स्वास्थ्य विभाग और एम्बूलेंस स्वामियों की मिलीभगत से ही हो रहा है ये सभी जिम्मेदार जानते भी हैं। सबसे बड़ा सवाल यह है स्वास्थ्य विभाग किसकी शह पर अपने हौंसलों को इतना बुलंद करता जा रहा है, इसमें किसी बड़े नेता या मंत्री का हाथ इनके सिर पर है या इनकी यूनियन के सामने हमारे सिस्टम ने घुटने टेक दिए हैं। हम लगातार स्वास्थ्य विभाग के काले कारनामों को जनता के सामने लेकर आ रहे हैं फिर भी कोई खास सुधार नहीं हो पा रहा है।
जनता आज मौजूदा सरकार एवं स्वास्थ्य विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों से पूछना चाहती है कि ये लूटपाट का खेल कब तक चलता रहेगा अगर ऐसे ही सब कुछ चलता रहा तो मौजूदा सरकार को इसका बहुत बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ेगा। भाजपा को तो नुकसान होगा ही साथ ही क्षेत्रीय नेता भी कुछ निजी स्वार्थ के चलते अपने वर्चस्व के साथ अपनी जमीन भी खत्म कर लेंगे। अब यहां देखने वाली बात तो यह रहेगी कि इतना सब होने के बाद भी क्या विभाग इन सब पर कार्यवाही करेगा या इस मामले को भी और सभी मामलों की तरह दबा दिया जाएगा। यदि कोई कार्यवाही नहीं हुई तो जनता सबकुछ देख रही है और साथ ही सोशल मीडिया बहुत तेजी से चल रही है। आने वाले समय में जनता खामोश रहकर खेल नहीं देखेगी बल्कि सही वक्त आने पर जिम्मेदारों को इसका जबाव अवश्य देगी।