संभल। बज़मे रूहे अदब सम्मल के तत्वधान में एक शाम निजाम सम्भली के नाम से एक मुशायरा प्रसिद्ध
शायर इन्तेखान सम्मली के मकान बेग़म सराय पर आयोजित हुआ। जिसमें शहर तथा बाहर के शायरो एवं बुद्धीजीवियो ने अपने कलाम से वाह वाही लूटी। मुशायरे की शुरुआत में इन्तेखाब सम्मली ने सभी शायरों को शॉल उढ़ाकर तथा निजाम सम्मली को ट्राफी पेश कर उनका स्वागत किया। वसीम अख्तर व डॉ0 अजीज़उल्ला ने निजाम सम्मली की अदबी खिदमात पर रोशनी डालते हुए उन्हें सिपास नामा पेश किया। बहारिया दौर का आगाज़ करते हुए इन्तेखाब सम्मली ने कहा- मुझको दुश्मन से न तलवार से डर लगता है, सिर्फ कमज़र्फ़ की गुफ्तार से डर लगता है। डॉ0 अजीज़उल्ला खाँ ने कहा चलते चलते रुक गए अपने कदम, आ गया अल्लाह क्या शहरे सितम। सय्यद मुजाहिद नादान ने कुछ यूँ कहा- आसमा हो जाओगे तुम हम जमीं हो जाएगें, यह न सोचा था कि इतना फासला हो जाएगा। डा0 कैफी सम्मली ने कहा, यह तेरे मेरे बीच नहीं जग आख़री, तू भी अभी हयात है मैं भी हयात हूँ। मुशायरे की अध्यक्षता करते हुए फहीम साकिब ने कहा, यह और बात जैसे भी गुज़री गुज़ार दी, हम ने मगर जमीर का सौदा नहीं किया। शायरा अज़रा इन्तेखाब सम्मली ने कहा, मेरा जन्मत तवाफ़ करती है, माँ के पैरों को जब दबाती है। बज़्म के सेक्रेटरी वसीम अख्तर ने कहा कि तुम्हारे हिज़्र में यह दिल धड़कना भूल बैठा है। तुझे कैसे भी करके अब हमारा कर लिया जाए। साहिने एजाज़ निज़ाम उद्दीन खां निजाम सम्मली ने कुछ यूं कहा- बेटी तू जहाँ जाएगी वह शीश महल है, उस घर में कभी भूल के पत्थर नहीं होना। बुरहान सम्मली ने कहा, फूल ही फूल हूँ मैं ख़ार नहीं, मेरा नफरत का कारोबार नहीं। सुल्तान अजहर मुरादाबादी ने कहा. राहे उलफत के हंसी शोक नज़ारे भरना, चाहता हूँ तेरे दामन मे सितारे भरना। इसके अतिरिक्त सुलतान मौ० खां कलीग, कौसर, तालिब सम्मली, नौशाद गोविन्दपुरी राज अन्जुम, कामिल शुजा अनवर, तनवीर हुसैन अशरफी आदि ने अपने कलाम पेश कर वाहवाही लूटी। मुशायरे में गुप्त रूप से हाजी अनीस सम्भावित चैयरमेन प्रत्याशी, अहसान खाँ हाफिज़ वसीम, मेम्बर राजा, पहलवान अन्सारी, अनीस पाशा, नवाव साद आदिल, रागिब पहलवान, राशिद अंसारी आदि मौजूद रहे। मुशायरे की अध्यक्षता फहीम साकिब व संचालन बुरहान सम्मली ने किया।

सम्भल से खलील मलिक