
ट्रक ठगों का भंडाफोड़: पांच गिरफ्तार
एसएसपी ने तोड़ा – ट्रक चोरी करके फाइनेंस घोटाला करने वालों का नेटवर्क
खुलेंगी और परते तो बेनकाब होंगे कई सफेद पोश,
156 (3) से एफआईंआर फिर एफआर फिर ठगी बड़ा नेटवर्क करता था करोड़ों का खेल
बरेली।शहर जब-जब अपराध के अंधेरे में डगमगाया, तब-तब कुछ अफसरों ने न केवल कानून की लौ जलाए रखी बल्कि माफिया तंत्र की जड़ों तक पहुंचकर उसकी सफाई की। एसएसपी अनुराग आर्य ऐसे ही अफसर हैं, जिन्होंने अपराध जगत में एक सर्जिकल स्ट्राइक करते हुए उन गिरोहों की कमर तोड़ दी जो वर्षों से कानून की आँखों में धूल झोंक रहे थे।
एसपी सिटी मानुष पारीक ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए बताया कि 16 अप्रैल का दिन इतिहास में एक मजबूत कानून व्यवस्था के प्रतीक के रूप में दर्ज हो गया जब थाना कैंट पुलिस ने वर्षों से सक्रिय ट्रक चोरों के ऐसे नेटवर्क का भंडाफोड़ किया, जिसने फाइनेंस कंपनियों को करीब 6 करोड़ रुपये का चूना लगाया। यह वही गैंग था जो ट्रकों को न केवल चुराता था, बल्कि उसे कानूनी रूप से ‘लौटाया हुआ’ दिखाकर फर्जी मुकदमे दर्ज करवाता और फिर फाइनेंस क्लेम लेकर मुनाफा कमाता।

एसएसपी ने जैसे ही इस गैंग की हलचलें भांपीं, उन्होंने एसपी सिटी मानुष पारीक को और सीओ पंकज श्रीवास्तव थाना के कैंट को विशेष निर्देश देते हुए कहा, “सिर्फ गिरफ्तार करना काफी नहीं, हमें इनके नेटवर्क को काटकर फेंकना है।” और यही हुआ एसपी सिटी ने सीओ पंकज श्रीवास्तव और थाना कैंट के प्रभारी निरीक्षक की अगुवाई में एक ऐसी टीम गठित की गई जिसने तकनीकी निगरानी से लेकर गुप्त मुखबिरों तक का सहारा लिया और आखिरकार बरेली, बहेड़ी, भोजीपुरा और अलीगंज जैसे विभिन्न थाना क्षेत्रों में सक्रिय इस गैंग को दबोच लिया।
गिरफ्तार किए गए गिरोह के सदस्य शाकिर उर्फ भूरा मास्टर—गैंग का मास्टरमाइंड, आरिफ—ट्रक चोरी का सहयोगी,सोहेल—चेसिस नंबर मिटाने और बॉडी में फेरबदल का जिम्मेदार, रहा है

ईशाक अली—फर्जी मुकदमे दर्ज करवाकर क्लेम लेने में माहिर,इनमें से प्रत्येक की भूमिका तय थी। शाकिर और अनीसुद्दीन आरटीओ में सेटिंग कर फर्जी रजिस्ट्रेशन नंबर दिलाते, ईशाक अली फाइनेंस क्लेम का खेल खेलता, सोहेल अपनी दुकान पर ट्रक की बॉडी में फेरबदल करता और बाबू नामक व्यक्ति (जो अभी फरार है) ट्रकों के इंजन व चेसिस नंबर बदलने का काम करता।
गिरफ्तार आरोपियों ने खुलासा किया कि उन्होंने पिछले 2 वर्षों में 50 से अधिक फर्जी मुकदमे बरेली की अदालतों से दर्ज करवाए। एक मुकदमे से औसतन 15 लाख रुपये का क्लेम निकलवाया गया। इस तरह कुल लगभग 6 करोड़ रुपये का नुकसान फाइनेंस कंपनियों को हुआ। इस गिरोह ने ट्रकों को न केवल चुराया बल्कि उन्हें पुराना दिखाकर कबाड़ियों को बेच दिया या अच्छे ट्रकों को फर्जी नंबर प्लेट व दस्तावेजों के साथ अन्य लोगों को बेच दिया।
यह कोई आम अपराध नहीं था—यह एक ऐसा षड्यंत्र था जिसमें कोर्ट में झूठे मुकदमे दर्ज कराए गए, ट्रक मालिकों को लालच देकर उनके ट्रकों को चोरी दिखाया गया और फिर अदालत के आदेश से मुकदमे लिखवाकर फाइनेंस क्लेम निकाला गया। आरटीओ ऑफिस से मिलकर फर्जी रजिस्ट्रेशन बनवाए गए। यह गैंग अगर जल्द न पकड़ा जाता, तो कानून का मखौल बन चुका होता।एसएसपी की सबसे बड़ी विशेषता उनकी रणनीतिक सोच है। उन्होंने पुलिस को सिर्फ अपराध के पीछे भागने वाली संस्था नहीं रहने दिया, बल्कि अपराध की जड़ों को खोज निकालने वाला सिस्टम बना दिया। ट्रक चोरी जैसा संगठित अपराध, जिसमें तकनीक, प्रशासन, कोर्ट और आरटीओ तक को भ्रमित किया गया, उसका पर्दाफाश करना मामूली बात नहीं।ईशाक के व्हाट्सएप से बरामद डेटा और विभिन्न ट्रकों से मिली फर्जी नंबर प्लेटों के जरिए एसएसपी आर्य की टीम ने यह सिद्ध कर दिया कि आधुनिक अपराध की काट आधुनिक जांच पद्धति ही है।

फर्जी मुकदमों की बात करें तो लगभग 52 मुकदमे ऐसे हैं जिनमें 20 में एफआर लग चुकी है, 17 में एक्सपंज, 3 में आरोप पत्र और 12 विवेचना में हैं। इसका मतलब साफ है—यह गिरोह कानून के साथ आंख-मिचौली खेलते हुए एक के बाद एक केस कोर्ट से लिखवाता गया और कंपनियों को ठगता रहा।