जिला अस्पताल में निशुल्क मोतियाबिंद के ऑपरेशन के लिए लेंस और दवा का मरीज कर रहे,इंतजार

बदायूं। जिला अस्पताल में नेत्र विभाग में लेंस व दवा की कमी से मोतियाबिंद का ऑपरेशन करने में चिकित्सा असमर्थता जता रहे है। जबकि अक्टूबर माह से मोतियाबिंद का ऑपरेशन की निशुल्क शुरुआत हो जाती है। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की सुस्ती के चलते समय से ऑडिट नहीं हो पाई। जिसके कारण मोतियाबिंद ऑपरेशन के मरीज नेत्र विभाग में भटक रहे है। अभी तक एक हजार मरीजों का मोतियाबिंद के लिए पंजीकरण हो चुका है। यहां प्रतिदिन 15 से 20 बुजुर्ग मरीज वापस लौट रहे हैं। निशुल्क दवा और काला चश्मा भी का अभाव बना हुआ है। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों द्वारा बताया जा रहा है कि ऑडिट देरी होने

की वजह से लेंस और दवा का टेंडर नहीं हो पाया था इसलिए देरी हो रही है बहुत जल्द ही टेंडर हो जाएगा और लेंस दवा खरीद कर नेत्र विभाग को सुपर्द कर दी जाएगी। फिलहाल 500 मरीज के लिए लेंस दवा मिलने की उम्मीद जताई जा रही है। जबकि दो अक्टूबर से मोतियाबिंद के ऑपरेशन के लिए 1000 से अधिक मरीज इंतजार कर रहे हैं।
राष्ट्रीय अंधता नियंत्रण कार्यक्रम के तहत मोतियाबिंद का ऑपरेशन कर मरीजों के आंखों में रोशनी देने का कार्य होता है। इसके तहत जिला अस्पताल पर निशुल्क ऑपरेशन की सुविधा है। यहां ओपीडी में मोतियाबिंद के मरीजों को चिह्नित कर ऑपरेशन किया जाता है। करीब दो माह से अधिक समय से लेंस, दवा व अन्य सामग्री को लेकर सीएमओ कार्यालय को अवगत कराया गया, लेकिन अभी तक टेंडर नहीं किया गया। जिससे मरीजों को लौटना पड़ रहा है।इन दवाओं की होती है जरूरत
मोतियाबिंद के ऑपरेशन के पहले व बाद में आंख में ड्राॅप डाली जाती हैं। इसमें टीआरपी ड्राॅप, एंटीबायोटिक ड्राॅप, सूजन, लाली कम करने के ड्राॅप के अलावा एसआईसीएस ब्लेड की जरूरत होती है। यह सब भी समाप्त हो गया है।

आंख के ऑपरेशन के लिए मरीज बड़ी उम्मीद के साथ जिला अस्पताल आ रहे है । लेकिन यहां मौजूद डॉक्टर ने लेंस और दवा न होने की बात कहकर लौटा रहे।
निजी अस्पताल में 15 से 20 हजार रुपये खर्चा बैठ जाता है इस वजह से गरीब मरीज वहां ऑपरेशन कराने असमर्थ हो जाते हैं।

टेंडर की प्रक्रिया चल रही है। पहले जिस कंपनी को टेंडर दिया था, उसने सप्लाई नहीं दी। इसकी वजह से देरी हुई है। जल्द ही दवा नेत्र विभाग को मिल जाएगी। इसके लिए प्रयास किए जा रहे हैं।

सीएमओ डॉ.रामेश्वर मिश्रा